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________________ (३४३) इन गजकूट पर्वतों पर शाश्वत जिनेश्वर भगवान के तीन मंदिर हैं, इस तरह प्राचीन पूर्वाचार्यों ने स्तोत्रों में कहा है । (१२१) जम्बू द्वीप प्रज्ञप्त्यादि सूत्रे तूपलभामहे । न साम्प्रतं तत्र तत्वं जानन्ति श्रुतपारगाः ॥१२२॥ परन्तु अभी जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति आदि सूत्रों में कही पर यह बात नहीं मिलती है। इस विषय में सत्य (तत्व) क्या है वह श्रुत पारगामी केवली भगवन्त जानें । (१२२) . "अतः एवोक्तं रत्लशेखर सूरिभिः स्वोपज्ञ क्षेत्र विचारे" - करि कुड कुंडन इदह कुरु कंचणजमल समविअड्ढेसु । जिण भवण विसं वाओ जो तं जाणं ति गीयत्था ॥१२३॥ .. इसी ही लिए पूज्य आचार्य श्री रत्नशेखर सूरि जी ने अपने द्वारा रचित क्षेत्र विचार ग्रन्थ में कहा है - "गजकूट, कुंड, नदी, सरोवर, कुरु, कंचन गिरि, तथा समवृत्त वैताढय इन सब स्थान पर जिन भवन सम्बन्धी मतभेद है । वास्तविकता क्या है ? वह तो गीतार्था ही जाने ।" . __भद्रशाल वनस्यास्य समभूमेरूपर्यथ । ...: स्यात्पंचयोजनशतातिक मे नन्दनं वनम् ॥१२४॥ - इस भद्रशाल वन की समभूमि से ऊपर चढ़ते, पांच सौ योजन पूर्ण होते 'नन्दनवन' नामक वन आता है । (१२४) . . योजनानां पंच शतान्येतद्विष्कमभतो मतम् । - • स्थितं मेरुं परिक्षिप्यं वलयाकृतिनात्मना ॥१२५॥ इसका विस्तार पांच सौ योजन का है, और वह मेरू पर्वत की वलयाकारे घिरा हुआ है । (१२५) .. बाह्याभ्यन्तररूपं हि विष्कम्भद्वितयं भवेत् । गिरीणां मेखलाभागे ततोऽत्र द्वयमुच्यते ॥१२६॥ पर्वतों की मेखला के विभाग में चौड़ाई दोनों प्रकार से होती है । एक बाहर से और दूसरा अन्दर की । अत: यहां भी दोनों प्रकार से कहते है :- (१२६) एक एकादश भागो योजनस्यापचीयते । प्रतियोजनमेवं च पंचशत्या व्यतिक्र मे ॥१२७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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