SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४२) मूले पंच योजनानां शतान्यायत विस्तृताः । मध्ये त्रीणि पंचसप्तत्यधिकानि शतानि च ॥११५॥ उपर्यर्द्धतृतीयानि शतानि विस्तृतायताः । कूटा इमे वर्षधरगिरिकूटसमा इति ॥१६॥ त्रि भि विशेषकं ॥ सभी गजकूट पांच सौ-पांच सौ योजन ऊंचे है और सवा सौ योजन जमीन के अन्दर गहरे हैं, वे मूल में पांच सौ योजन लम्बे-चौड़े हैं, मध्य भाग में तीन सौ पचहत्तर योजन लम्बे-चौड़े हैं और ऊपर दो सौ पचास योजन लम्बे-चौड़े हैं। और वे वर्षधर पर्वत के कूट समान है । (११४-११६) . सर्वेऽमी वनखंडेन पद्मवेदिकयान्विताः । सिंहासनाढयस्वस्वेशप्रासादभ्राजिमौलयः ॥११७॥ .. इन सर्व कूटों पर वन तथा पद्मवेदिका भी रही है, और इनके शिखर भी . सिंहासनों से युक्त है, और अपने-अपने स्वामियों के प्रासाद से शोभायमान हो रहे है । (११७) द्वाषष्टिं योजनान्येते प्रासादा विस्तृतायताः । एकत्रिंशद्योजनोच्चाः रम्याः विविधरत्नजाः ॥११८॥ ये जो प्रासाद कहे हैं वे विविध रत्नों से बने हैं । वे बासठ योजन लम्बे चौड़े हैं, और ऊंचाई में इकतीस योजन हैं । (११८) · , एक पल्यायुषस्तेषु स्वस्वकूटसमाभिधाः । __. क्रीडन्ति नाकिनः स्वैरं दिक्कुम्भिकूट नायकाः ॥११६॥ इन प्रासादों में एक पल्योपम के आयुष्य वाले अपने-अपने कूट के समान नाम वाले कूट पर्वत के स्वामी देव स्वेच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं । (११६) स्वस्व कूट विदिश्वेषां राजधान्यः प्रकीर्तिताः । जम्बूद्वीपेऽन्यत्र यथा योगं विजयदेववत् ॥१२०॥ ... अपने-अपने कूट की विदिशाओं में अन्य जम्बू द्वीप में विजयदेव की राजधानी समान उनकी राजधानियां है । (१२०) एतेषु करिकू टेषु पूर्वाचार्यैश्चिरन्तनैः । पठयन्ते जिनचैत्यानि स्तोत्रेषु शाश्वताहताम् ॥१२॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy