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________________ (३३४) संकीर्ण होता है, और वहां से उतरते चौड़ा होते जाते मूल के स्थान पर बहुत चौड़ा हो जाता है तथा मेरू पर्वत को ऊंचे किए गोपूच्छ के आकार वाला कहा है । (६३) अथात्र त्रीणि काण्डानि वर्तन्ते कनकाचले । काण्डं विभागो नियत विशिष्टपरिणामवान् ॥६४॥ . अब इस मेरु पर्वत के तीन कांड होते है अर्थात इसके विशिष्ट विभाग कहे · है । (६४) चतुर्विधं काण्डमाद्यं मृत्तिकाबहुलं क्वचित् । पाषाणबहुलं वज़ बहुलं शर्क रामयम् ॥६५॥. ' उसमें प्रथम कांड (विभाग) के भी चार भेद है - क्वचित मिट्टीमय, क्वचित् पाषाण (पत्थर)मय, क्वचित् वज्रमय और क्वचित् वेणुमय है । (६५) काण्डं द्वितीयमप्येवं चतुर्धाऽस्य निरूपितम् । ... : अंकजं स्फाटिकं क्वापि सौवर्णं राजतं तथा ॥६६॥ दूसरे कांड-विभाग के भी इसी तरह से अंक रत्नमय, स्फटिक रत्नमय, सुवर्णमय और रूप्य (चांदी) मय इस तरह चार भेद कहे है । (६६) ज्यात्यजाम्बूनदमयं तृतीयं काण्डमीरितम् । त्रयाणामपि काण्डानां परिमाणमथोच्यते ॥६७॥ सहस्र योजनोन्मानमाद्यमारभ्य कन्दतः । त्रिषष्टिश्च सहस्राणि द्वितीयं समभूतलात् ॥१८॥ ततस्तृतीयं षट्त्रिंशत्सहस्त्रावधि कीर्तितम् ।' एवं काण्डैस्त्रिभिस्तस्य लक्षमेकं समाप्यते ॥६६॥ और तीसरा काण्ड (विभाग) सम्पूर्ण उत्तम सुवर्णमय है । इन तीनों कांड का प्रमाण इस प्रकार है - मूल से लेकर समतल भूमि तक एक हजार योजन का प्रथम कांड है । समतल भूमि से तिरसठ हजार योजन तक दूसरा कांड है, और वहां से ऊपर छत्तीस हजार योजन तक तीसरा कांड है । इस तरह तीनों कांडों द्वारा मेरु पर्वत समग्र एक लाख योजन का होता है । (६७-६६) . "अयं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्राभिप्रायः ॥ सम वायांगे तु अष्टत्रिंशत्तमे सम वाये द्वितीय विभागः अष्ट त्रिंशद्योजन सहस्राणि उच्चत्वेन भवतीति उक्तम् ॥"
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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