________________
(३३२) .. . एवं योजनशतसहस्त्रेष्वपि भाव्यम् । अत एव योजनानां सहस्रे मूलतो गते । नवतिः योजनान्यंशा एकादशोद्भवा दश ॥५१॥ एतावानेकादोंशः सहस्रस्य क्षयं गतः । ततः सहस्राणि दश विष्कम्भो धरणी तले ॥५२॥ ..
लाख योजन में इसी तरह जानना - यदि मूल स्थान से एक हजार योजन ऊंचे चढ़ा हो तो उस हजार को ग्यारह से भाग देने पर जो नब्बे पूर्णांक दस ग्यारहांश योजना आया, उस स्थान का व्यास मूल के व्यास से कम होता है, इससे मेरू पर्वत की पृथ्वीतल आगे की चौड़ाई दस हजार योजन होती है । (५१-५२)
एकादशस्वेकादशस्वतिक्रान्तेषु भूमितः । .. सहस्रेषु किलैकैकं सहस्रं व्यासतोहू सेत् ॥५३॥ .
इस तरह प्रत्येक ग्यारह हजार पोजन ऊंचे चढ़ने पर, चौड़ाई में एक हजार योजन घटता है । (५३)
एवं च नवनवतेः सहस्राणामतिक मे । .. शिरोभागेऽस्य विष्कम्भः सहस्रभवशिष्यते ॥५४॥
इस गिनती से निन्यानवे हज़ार योजन ऊंचे चढ़ने पर, चौड़ाई में नौ हजार योजन कम होता है, अतः केवल एक हजार योजन चौड़ा रहता है । (५४)
यद्वा कन्दाद्योजनानां लक्षेऽतीते शिरस्तले । . लक्षस्यैकादशो भाग एतावान् परिहीयते ॥५५॥ नवतिर्योजनशतान्यधिका नवतिस्तथा । अंशा दशैकादशोत्थाः सहस्त्रं शिष्यते ततः ॥५६॥ युग्मं ।
अथवा मूल स्थान से एक लाख योजन ऊपर आकर, उस स्थान से इस लाख का ग्यारहवा अंश, अर्थात् नौ हजार नब्बे पूर्णांक दस ग्यारहांश, योजन चौड़ाई में घटता है, इस तरह गिनते भी शिखर में एक हजार योजन चौड़ाई में रहता है । (५५-५६)
प्रत्येकं परितः पंचशतविसतृतयोः ननु । नन्दनसौमनसयोः सद्भावान् मेखलाद्वये ॥५७।।