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________________ (३३०) चौड़ाई में से ऊपर के विभाग की चौड़ाई निकाल लेने के बाद, शेष रही संख्या को पर्वत की मध्यवर्ति ऊंचाई से भाग देना, इस तरह करने पर जो संख्या का अंक आता है, वह शिखर से नीचे उतरते, दोनों तरफ से वृद्धि समझना और नीचे से ऊपर चढ़ना वह दोनों तरफ हानि (कमी) समझना । (३७-३८) ... तथाहि - साहस्र मौलिविष्कम्भे कन्द व्यासाद्विशोधिते । शेषं नवत्यधिकानि शतानि नवतिः स्थितम् ॥२६॥ अंशा दशैकादशोत्थाः चैषां कर्तुं सवर्णनम् । ... योजनानां राशिमेकादशभिर्गुणयेत् बुधः ॥४०॥ भागान् दशोपरितनान् क्षिपेज्जाता इमे ततः । ... लक्षं भाज्यराशिमेनं क्वचित् संस्थापयेत् बुधः ॥४१॥ जैसे कि - मूल की चौड़ाई में से शिखर की चौड़ाई के एक हजार योजन का बाद निकाल करने पर, नौ हजार नब्बे पूर्णांक दस ग्यारहांश - १००६० - १०/ ११-१००० = ६०६० - १०/११ शेष रहता है । इसका सवर्णन करने के लिए ग्यारह से गुणा कर दस अंश है, उसे मिला देना अतः एक लाख (६०६० १०/११४११= ६६६६०+१० = १,००,०००) भाज्य राशि होती है । इसे एक और रखना चाहिए। (३६-४१) नगोच्छ्यो लक्ष रूपो भाजको रूद्रसंगुणः । लक्षाण्येकादश जातस्तं भागार्थमधो न्यसेत् ॥४२॥ युग्मं ॥ इस तरह पर्वत की ऊंचाई एक लाखं योजन की है, उसे भी ग्यारह से गुणा करने पर १,००,०००x११ = ११,००,००० ग्यारह लाख भाजक राशि होती है। (४२) अल्पत्वेन विभाज्यस्य भूयस्त्वात् भाजकस्य च । भागा प्राप्त्यापवय॑ते लक्षण भाज्यभाजको ॥४३॥ .. इस प्रकार भाज्य राशि जो एक लाख योजन है वह भाजक राशि से अल्प आती है, इसलिए भाग नहीं होगा, इसलिए भाज्य, भाजक को उल्टा कर देना चाहिए । (४३) उपर्येकः स्थितोऽधस्तादेकादश स्थिताः ततः । । लब्ध एकादश भागो योजनं योजनं प्रति ॥४४॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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