SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२६) अथः व्यासानु सारेण सर्वत्र उच्चत्व ज्ञानाय करणम् यावान् यत्रास्य विस्तारो निश्चितो भूतलादिषु । तस्मिन्मूलस्य विस्ताराच्छोधिते यत्तु शिष्यते ॥३२॥ गुण्यं तदेकादशभिः यद् भवेत्तत्प्रमाणतः । उच्चत्वमस्य विष्कम्भ स्यानुसारेण तद्यथा ॥३३॥ युग्मं ॥ अब व्यास के आधार पर ऊंचाई जानने की युक्ति इस प्रकार है - मूल स्थान में अथवा किसी भी स्थान से जितनी निश्चित चौड़ाई हो उसे मूल की चौड़ाई में से निकाल देने पर जो शेष रहे, उसे ग्यारह से गुणा करने पर जो अंक आता है, वही उस स्थान की ऊंचाई समझना । (३२-३३) योजनानां सहस्राणि दश व्यासोऽस्य भूतले । मूलविष्कम्भतस्तेषु विशोधितेष्वदः स्थितम् ॥३४॥ नवतिर्योजनान्यंशा दश चैकादशात्मकाः । अस्मिन्नैकादशगुणै सहस्रमियमुच्चता ॥३५॥ युग्मं ॥ उदाहरण तौर पर मेरु,पर्वत की पृथ्वी तल की चौड़ाई दस हजार योजन है, और मूल की चौड़ाई में से बाद करते नब्बे पूर्णांक ग्यारहांश शेष - १००६०-१०/ ११-१०,००० = ६० -१०/११ योजन रहता है । यह शेष रहे, इसे ग्यारह से गुणा करने पर -६० १०/११४११ = १००० एक हजार आता है उस स्थान की ऊंचाई समझना । (३४-३५) मूलभूतलयोर्मध्ये सर्वत्रैवं विभाव्ताम् । विस्तारस्यानुसारेण तुंगत्वमीप्सितास्पदे ॥३६॥ इस तरह मेरु पर्वत के मूल और भूतल के बीच में सर्वत्र इच्छित स्थान की चौड़ाई के आधार पर से ऊंचाई जान सकते हैं । (३६) अथ सर्वत्र विष्कम्भ वृद्धिहानिज्ञानाय कारणम् । उपरितनेविस्तारेऽधस्तन विस्तारतः कृते दूरम् । तन्मध्यवर्तिशैलोच्छ्रयेण शेषे हृते विदुषा ॥३७॥ यल्लब्धं तदुभयतो वृद्धिर्गिरिमौलितो ह्यधःपतने । · तावत्येव च हानिौ लावारोहणेऽधस्तः ॥३८॥ अब सर्वत्र चौड़ाई ज्यादा, कम जानने के लिए इस तरह युक्ति है - नीचे की
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy