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इसका आकार एक शिखर समान होने से यह कूट शाल्मली नाम से प्रसिद्ध है तथा सुपर्ण कुमार जातीय वेणु देव नामक देव इसका स्वामी है । (४१८)
"तथोक्तं स्थानांग सूत्र द्वितीय स्थानके । तत्थणं दो महती महालया महदुमा पण्णता यावत् कूट सामली चेव जम्बूचेव सुदंसणा।तत्थणं दो देवा महिड्ढिया जाव महा सोख्ख पलि ओव मठि तीया परि वसंति । तं गरुले चेव वेणु देवे आणाढीए चेव जम्बू दिवा हि वइ । एतद् वृत्ता वपि गरुड़ः सुपर्ण कुमार जाती यो वेणु देवो नाम्ना इत्यादि ॥ एवं च न अयं सुपर्ण कुमाराणां दाक्षिणात्य इन्द्रः संभाव्यते।किन्तु अन्य एव ।तस्य हि इन्द्र त्वेन सार्ध पल्योपम मरूपाया उत्कृष्ट स्थिते ाय्यत्वात् । अयं तु पल्योपम स्थितिक इति।"
इस सम्बन्ध में स्थानांग सूत्र के दूसरे स्थानांग में कहा है कि वहां दो महाबल रूप दो महान वृक्ष है । एक कूट शाल्मली और दूसरा सुदर्शन जम्बू वृक्ष है, वहां महान समृद्धिशाली, अत्यंत सुखी और पल्योपम की आयुष्य वाले दो देव रहते है । सुपर्ण जातीय वेणुदेव और दूसरा जम्बू द्वीप का स्वामी अनादृत देव है। इसकी टीका में भी सुपर्ण जातीय अर्थात् गरुड़ जाति का देव वेणुदेव है । यह देव सुपर्ण कुमार दक्षिण दिशा का इन्द्र संभव नहीं है । यह दूसरा देव होना चाहिए क्योंकि इन्द्रदेव की उत्कृष्ट स्थिति ढेड़ पल्योपम की होनी चाहिए और इस देव की तो एक पल्योपम की है।
मतान्तरे तुःक्रीडा स्थानमयं वृक्षः स्यात्सुपर्ण कुमारयोः । वेणुदेव वेणुदालि सुरयोरूभयोरपि ॥४१६॥
अन्य मतवाले यह कहते है कि यह वृक्ष वेणु देव और वेणु दालि नाम के सुपर्ण कुमारो को क्रीड़ा करने के स्थान रूप है । (४१६) - "तथा चाह सूत्र कृतांग चूर्णिकृत्शाल्मली वृक्षवक्त व्यतावसरे। तत्थ वेणुदेवे वेणु दाली य वसइ । तयोर्हि तत् क्रीडा स्थान मिति ॥"
'इस सम्बन्ध में सूत्र कृतांग की चूर्णी - टीका में शाल्मली वृक्ष के वर्णन करते समय में कहा है कि - वहां वेणुदेव और वेणु दालि नाम देव रहते हैं क्योंकि इन दोनों का यह क्रीडा स्थान है ।' .
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। एक पल्यापम का हो