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निषधाचल संकाश शतपत्रादिशोभितः । निषधाख्य सुरावासः प्रथमो निषध हृदः ॥४०५।।।
अब इन दोनों पर्वत से उत्तर में उत्तर कुरु के सरोवर समान पांच सरोवर हैं। प्रथम निषध नाम का है उसमें निषध पर्वत जैसे कमल शोभायमान हो रहे है । और उसमें देव कुरु नाम का देव निवास करता है । (४०४-४०५)
सदेव कुरु संस्थान शतपत्रद्यलंकृतः । . .... देवकुर्वमरावासो हृदः देवकुरुः परः ॥४०६॥
दूसरा देवकुरु नाम का सरोवर है, वह देवकुरु के आकार वाले कमलों से शोभायमान है, और उसमें देवकुरु नाम का देव निवास करता है । (४०६)...
सूरनामा तृतीयस्तु हृदः सुरसुराश्रितः । .. सुलसस्वामिकस्तुर्यो हृद स्यात् सुलसाभिधः ॥४०७॥ ..
तीसरा 'सूर' नाम का सरोवर है उसमें सूर नाम का देव रहता हैं, चौथा : 'सुलस' नाम का सरोवर है उसका स्वामी 'सुलस' देव है । (४०७)
भूषितः शतपत्राद्यै विद्युदुद्योतपाटलैः । विद्युत्प्रभः पंचमः स्याद्विद्युत्प्रभाधिदैवतः ॥४०८॥
पांचवें सरोवर का नाम विद्युत्प्रभ है । उसमें विद्युत् समान चमकते कमल शोभायमान होते हैं, उसका स्वामी विद्युत्प्रभ नाम का देव है । (४०८)..
पद्म पद्मपरिक्षेपतत्संख्या भवनादिकम् ।
अत्रापि पद्महदवत् विज्ञेयमविशेषतः ॥४०६॥
इन पांच सरोवर के मुख्य कमल के चारो तरफ, कमल वलय, उनकी संख्या, उनके भवन, आदि सारा पद्म सरोवर के समान समझ लेना । (४०६)
पूर्व पश्चिम विस्तीर्णाः ते दक्षिणोत्तरायताः । प्राक् प्रत्यक् च दश दश कांचनाचलचारवः ॥४१०॥
ये पांचो सरोवर पूर्व पश्चिम में चौड़े हैं और उत्तर से दक्षिण में लम्बे हैं। इनकी पूर्व पश्चिम दोनों दिशाओं में दस-दस सुन्दर कंचन गिरिनाम के पर्वत है । (४१०)
कांचनाद्रिहृदेशानामेषां विजयदेववत् । समृद्धानां राजधान्यो दक्षिणस्यां सुमेरूतः ॥४११॥