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________________ . (३१६) अत्र देवकुरुर्नाम देवः पल्योपम स्थितिः । वसंत्यतस्तथा ख्याता यद्वेदं नाम शाश्वतम् ॥३६८॥ यहां देव कुरु नाम का एक पल्योपम के आयुष्य वाला देव रहता है, इसलिए इसका नाम देव कुरु पड़ा है । अथवा यह नाम एक शाश्वत ही नाम है। इस तरह समझना । (३६८) 'धनुःषष्ट व्यास जीवादिकं मानं तु धीधनैः । अत्राप्युत्तर कुस्वद्वि ज्ञेयम विशेषितम् ॥३६६॥ इसका धनुः पृष्ट, व्यास, जया (जीवा) आदि सर्व का प्रमाण सम्पूर्ण उत्तरकुरु के अनुसार समझना । (३६६) किन्त्वत्र नीषधासन्ना जीवा कल्प्या विचक्षणैः । विद्युत्प्रभ सौमनसायामानुसारतो धनुः ॥४००॥ परन्तु यहां 'जीवा' निषधा पर्वत के पास कल्पना करना और धनुः पृष्ट विद्युत्प्रभ और सौमनस पर्वतों की लम्बाई अनुसार कल्पना करना । (४००) शतान्यष्ट योजनानां चतुस्त्रिंशद्युतानि च । 'चतुरः साप्तिकान् भागान् व्यतीत्य निषधाचलात् ॥४०१॥ . शीतोदायाः पूर्वतटे विचित्रकूट पर्वतः । चित्रकूट: परतटे सामस्त्याद्यमकोपमौ ॥४०२॥ युग्मं ॥ निषधाचल से आठ सौ चौंतीस योजन और चार सप्तामाश (८३४-४/७) योजन जाने के बाद शीतोदा नदी के पूर्व तट पर 'विचित्रकूट' नाम से पर्वत है और पश्चिम तट पर चित्रकूट नामक पर्वत आया है, इन दोनों का समग्र स्वरूप यमक पर्वत समान समझ लेना चाहिए । (४०१-४०२) किन्त्वेतत्स्वामिनोनं विचित्रचित्रदेवयोः । - जम्बू द्वीपेऽन्यत्र पुर्यो मेरोः दक्षिणतो मते ॥४०३॥ परन्तु इनके स्वामी चित्रदेव और विचित्रदेव की राजधानी दूसरे जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत की दक्षिण में कही है । (४०३) अर्थताभ्यां पर्वताभ्यामुत्तरस्याममी स्मृताः । हृदाः पंचोत्तरकुरुहृदतुल्याः स्वरूपतः ॥४०४॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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