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(३१७) इस नौवे शिखर के स्वामी हरिदेव की राजधानी, चमर चंचा नगरी के समान दूसरे जम्बू द्वीप के अन्दर मेरूपर्वत के दक्षिण में है । (३८६)
"तथोक्तं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे । जहा मालवंत स्स हरिस्सह कूडे तह चेव हरिकुडे राय हाणी तह चेव दाहिणोणं चमर चंचा राय हाणी तहणे यव्वा ॥क्षेत्र समास वृत्ता वपि सा चमर चंचा राजधानीवत् प्रत्येया इति ॥"
_ 'जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी कहा है कि - यह हरिकूट नाम का शिखर है, वह माल्यवान पर्वत के हरिस्सह शिखर के समान समझना । और इस हरिदेव की राजधानी चमर चंचा राजधानी के समान दक्षिण दिशा में समझना । क्षेत्र समास की टीका में भी इसे चमर चंचा सद्दश कहा है।'
शेषकूटपतीनां तु नगर्यो विजयोपमाः । जम्बू द्वीपेऽन्यत्र मेरोदक्षिणस्यांयथायथम् ॥३६०॥
शेष शिखरों के स्वामियों की राजधानी विजयदेव की राजधानी के समान दूसरे जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत से दक्षिण में कही है । (३६०)
दिक्कु मार्यो निवसतः तत्र पंचमषष्ठयोः । . पुष्पमालाऽनिन्दिताख्ये शेषेषु पूर्ववत् सुराः ॥३६१॥
. इन शिखरों में से पांचवे और छठे शिखर पर पुष्पमाला और अनिन्दिता नाम की दिक्कुमारियां रहती है । और शेष सात शिखरों पर पूर्व के समान उसके नाम वाले देव निवास करते हैं । (३६१)
भोगकरादिमा गन्धमादनाद्यद्रिसानुषु । वसन्त्यो दिक्कुमार्योऽष्टौ या एवमिह भाषिताः ॥३६२॥ शैलेष्वमीषु क्रीडार्थं तासां वासो भवेत् ध्रुवम् । वसन्ति च स्व स्व गजदन्ताधो भवनेष्विमाः ॥३६३॥ एकैक गजदन्ताधो द्वे द्वे स्तो भवने तयोः । तिर्यंग्लोकं व्यतिक्रम्या सुरादि भवनास्पदे ॥३६४॥ अधोलोकनिवासिन्योऽत एवामः श्रुते मताः ।। भू शुद्धि सूति वेश्मादिनियुक्ता जिन जन्मनि ॥३६५॥
गन्ध मादन आदि के शिखर पर भोगकरा आदि आठ दिक्कुमारियों का निवास कहा है । इस सम्बन्ध में इस तरह समझना कि वे वहां क्रीडा करने जाती