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________________ (३१६) . . तपनीयमयत्वेन विद्युद्वद्दीप्तिमत्तया । विद्युत्प्रभेशयोगाद्वा ख्यातो विद्युत्प्रभाख्यया ॥३८२॥... वह सुवर्ण मय होने से विद्युत बिजली समान चमकता है, इसलिए अथवा विद्युत्प्रभ नाम का इसका अधिष्ठायक देव होने से इसका नाम विद्युत्प्रभ पड़ा है। (३८२) आद्यं सिद्धायतनाख्यं विद्युत्नभं द्वितीयकम् । तृतीयं देवकुर्वाख्यं ब्रह्मकूटं तुरीयकम् ॥३८३॥ पंचम कनकाभिख्यं षष्ठं सौवस्तिकाभिधम् । सप्तमं सीतोदाकूटं स्याच्छतज्वलमष्टमम् ॥३८४॥. हरिकूटं तु नवमं कूटैरेभिरलंकृतः । . विभाति सानुमानेष वेदिकावनशोभितः ॥३५॥ इस विद्युत्प्रभ पर्वत के नौ शिखर है वह इस तरह से १- सिद्धायतन, २- विद्युत्प्रभ, ३- देवकुरु, ४- ब्रह्म.कूट,५- कनक,६- सौवस्तिक,७-सीतोदा, ८- शतज्वल, और ६- हरिकूट है । पद्मवेदिका और बगीचों से यह पर्वत शोभायमान हो रहा है । (३८३-३८५) नैर्ऋत्यां मन्दरात् ज्ञेयमाद्यं कूटचतुष्टयम् । षष्ठादुत्तरतस्तुर्यान्नैर्ऋत्यां पंचमं मतम् ॥३८६॥ दक्षिणोत्तरया पंक्त्या शेषं कूटचतुष्टयम् । मानतोऽष्टा कूटानि हिमवदगिरिकूटवत् ॥३८७॥ इन नौ शिखरों में से पहले चार शिखर मेरूपर्वत से नैर्ऋत्य कोण में आए है। पांचवा शिखर छठे से उत्तर में आया है, और चौथे से नैर्ऋत्य में आया है । शेष चार हैं, वे उत्तर से दक्षिण एक लाइन में आए है । इन नौ शिखरों में से आठ का मान हिमवंत पर्वत के शिखर समान है । (३८६-३८७) नवमं निषधासन्न दक्षिणस्यां किलाष्टमात् । सर्वथा माल्यवद् भाविहरिस्सहसमं च तत् ॥३८८॥ और नौवां शिखर जो आठ में से दक्षिण में निषध पर्वत के नजदीक है, उसका माप माल्यवान पर्वत के हरिस्सह शिखर के अनुसार है । (३८८) ज्ञेया चमरचंचावदे तत्कूटपतेर्हरेः । मेरोपाच्यां नगरी जम्बूद्वीपे परत्र सा ॥३८६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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