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निषधानेरूत्तरस्यामाग्नेय्यां मन्दराचलात् । प्रतीच्यां मंगलावत्या योऽसौ सोमनसाभिधः ॥३७१॥
इसमें जो सौमनस नामक पर्वत है वह निषध पर्वत से उत्तर में मंदराचल से अग्नि कोने में और मंगलावती विजय के पश्चिम में आया है । (३७१)
देव देव्यो वसन्त्यत्र यतः प्रशान्तचेतसः । ततः सौमनसो यद्वा सौमनसाख्यभर्तृकः ॥३७२॥
यहां सुमन अर्थात् शान्त मन वाले देव देवियां निवास करते हैं । इस कारण से अथवा तो इनका सौमनस नामक अधिष्ठायक देव होने से यह 'सौमनस' कहलाता है । (२७२)
तुरंग स्कन्ध संस्थानो गजदन्त समोऽपि सः । मनोहरो रूप्यमयः सप्त कूटोपशोभितः ॥३७३॥
इसका अश्व के स्कंध समान आकार है । गजदंत सद्दश मनोहर दिखता है और यह चांदीमय है और इसके सात शिखर है । (३७३)
सिद्धायतनमाद्यं स्यात् परं सौमनसाभिधम् । सन्मंगलावतीकूट देव कुर्वभिधं परम् ॥३७४॥ विमलं कांचनं चैव वासिष्टं कूटमन्तिमम् । प्रमाणं ज्ञेयमेतेषां हिमवगिरिकूटवत् ॥३७५॥ युग्मं ॥
इसके सात शिखर इस प्रकार है - १- सिद्धायतन २- सौमनस, ३मंगलावती ४- देवकुर ५- विमल ६- कांचन और ७- वसिष्ट । इनका प्रमाण हिमवंत पर्वत के शिखर समान जानना चाहिए । (३७४-३७५)
आग्नेय्यामादिमं कूटं मन्दरासन्नमाहितम् । तस्याग्नेय्यां द्वितीयं तु तस्याप्याग्नेयकोणके ॥३७६॥ कटं तृतीयमित्येतत्कूटत्रयं विदिस्थितम् । अथो तृतीयादाग्नेय्यामुत्तरस्यां च पंचमात् ॥३७७॥ कूटं चतुर्थं प्रज्ञप्तमेतस्मात्कूटतः परम । दक्षिणोत्तरया पंक्त्या शेषं कूटत्रयं भवेत् ॥३७८॥ विशेषकं ॥
प्रथम शिखर मेरूपर्वत के पास में अग्नि कोण में आया है, इसके अग्नि कोण में दूसरा शिखर आया है, और दूसरे शिखर के अग्नि कोण में तीसरा आया