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________________ (३१४) . निषधानेरूत्तरस्यामाग्नेय्यां मन्दराचलात् । प्रतीच्यां मंगलावत्या योऽसौ सोमनसाभिधः ॥३७१॥ इसमें जो सौमनस नामक पर्वत है वह निषध पर्वत से उत्तर में मंदराचल से अग्नि कोने में और मंगलावती विजय के पश्चिम में आया है । (३७१) देव देव्यो वसन्त्यत्र यतः प्रशान्तचेतसः । ततः सौमनसो यद्वा सौमनसाख्यभर्तृकः ॥३७२॥ यहां सुमन अर्थात् शान्त मन वाले देव देवियां निवास करते हैं । इस कारण से अथवा तो इनका सौमनस नामक अधिष्ठायक देव होने से यह 'सौमनस' कहलाता है । (२७२) तुरंग स्कन्ध संस्थानो गजदन्त समोऽपि सः । मनोहरो रूप्यमयः सप्त कूटोपशोभितः ॥३७३॥ इसका अश्व के स्कंध समान आकार है । गजदंत सद्दश मनोहर दिखता है और यह चांदीमय है और इसके सात शिखर है । (३७३) सिद्धायतनमाद्यं स्यात् परं सौमनसाभिधम् । सन्मंगलावतीकूट देव कुर्वभिधं परम् ॥३७४॥ विमलं कांचनं चैव वासिष्टं कूटमन्तिमम् । प्रमाणं ज्ञेयमेतेषां हिमवगिरिकूटवत् ॥३७५॥ युग्मं ॥ इसके सात शिखर इस प्रकार है - १- सिद्धायतन २- सौमनस, ३मंगलावती ४- देवकुर ५- विमल ६- कांचन और ७- वसिष्ट । इनका प्रमाण हिमवंत पर्वत के शिखर समान जानना चाहिए । (३७४-३७५) आग्नेय्यामादिमं कूटं मन्दरासन्नमाहितम् । तस्याग्नेय्यां द्वितीयं तु तस्याप्याग्नेयकोणके ॥३७६॥ कटं तृतीयमित्येतत्कूटत्रयं विदिस्थितम् । अथो तृतीयादाग्नेय्यामुत्तरस्यां च पंचमात् ॥३७७॥ कूटं चतुर्थं प्रज्ञप्तमेतस्मात्कूटतः परम । दक्षिणोत्तरया पंक्त्या शेषं कूटत्रयं भवेत् ॥३७८॥ विशेषकं ॥ प्रथम शिखर मेरूपर्वत के पास में अग्नि कोण में आया है, इसके अग्नि कोण में दूसरा शिखर आया है, और दूसरे शिखर के अग्नि कोण में तीसरा आया
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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