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'बहुश्रुत' अध्ययन में इसलिए कहा है कि - जैसे 'अनादृत देव का सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष सर्व वृक्षों में मुख्य- सर्व शिरोमणि है, वैसे बहुश्रुत में जम्बू स्वामी मुख्य है ।' (३६४)
जम्बूद्वीप पतिर्देवो वसत्यस्यामनादृतः । जम्बू स्वामि पितृव्यो यः प्राग्भवे सोऽधुनास्त्यसौ ॥३६५॥ ।
इस जम्बू वृक्ष में जम्बू द्वीप का स्वामी 'अनादृत' नामक अधिष्ठायक देव रहता है । वह जन्म में इस जम्बू स्वामी का चाचा था और अभी वहां पर है। (३६५) .
चतुः सामानिनक सुरसहससेवित क्रमः ।
महिषीभिः चतसृभिः स्नेहिनीभिः कटाक्षितः ॥३६६॥ ... अनादृत देव की सेवा के लिए चार हजार सामानिक देव हैं, और उपभोग के लिए चार स्नेहमयी पटरानियां हमेशा उपस्थित होती है । (३६६)
पर्षद् भिः तिसृभिः जुष्टः सप्तभिः सैन्य सैन्यपैः । - उदायुधैः षोडशभिः सहस्त्रैश्चात्मरक्षिणाम् ॥३६७॥
इसकी तीन सभा है, सात सेना और सेना पति है, और इसके संरक्षण के लिए सोलह हजार देव शस्त्र सज्जित होकर तैयार होते हैं । (३६७) - व्यन्तराणां व्यन्तरीणामन्येषामपि भूयसाम् ।
अनांदृत राजधानी वास्तव्यानामधीश्वरः ॥३६८॥
इसकी राजधानी में रहने वाले अन्य भी अनेक व्यन्तर देव और व्यन्तर देवियां हैं जिनका वह स्वामी है । (३६८)
मेरोरूदीच्यामन्यत्र जम्बू द्वीपे महर्द्धि कः ।
पुर्यामनाद्दतारख्यायां साम्राज्यं पाल यत्यसौः ॥३६६॥ कलापकं ॥ - महाऋद्धि-समृद्धिशाली इस 'अनादृत' देव को मेरू के उत्तर में दूसरे जम्बू द्वीपे में 'अनादृत' नाम की राजधानी है वहा वह राज्य भोगता है । (३६६)
यौ सीमाकारिणौ देवकुरुणां धरणीधरौ ।
सौमनस विद्युत्प्रभाभिधौ तौ वर्णयाम्यथ ॥३७०॥ 'अब कुरु देव की सीमा में 'सौमनस' और 'विद्युत्प्रभ' नाम के दो पर्वत आए है उसके विषय में कुछ कहता हूँ । (३७०)