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(३११)
वायव्य कोने के प्रासाद से पूर्व में और उत्तर दिशा के भवन से पश्चिम में एक सातवां शिखर होता है । (३५३)
उदग्भवनतः प्राच्यामथ पश्चिमतोऽपि च । ऐशान कोण प्रासादादत्र कूटोऽष्टमो मतः ॥३५४॥
और उत्तर दिशा के भवन से पूर्व में और ईशान कोने के प्रासाद से पश्चिम में आठवां शिखर है । (३५४)
एवमष्टाप्यमी कूटा जात्यस्वर्णमया स्मृताः । द्वे योजने भूमिमग्ना योजनान्यष्ट चोच्छ्रिताः ॥३५५॥
इस तरह आठ शिखर है, वे आठों श्रेष्ठ सुवर्णमय है । वे दो योजन पृथ्वी में रहे है, और आठ योजन ऊंचे है । (३५५) . विष्कम्भायामतो मूले योजनान्यष्ट कीर्तिताः ।
मध्ये षड्वं चत्वारि गोपुच्छाकृतयस्ततः ॥३५६॥
उनकी लम्बाई चौड़ाई मूल में आठ योजन है, मध्य में छ: योजन समान है, और ऊपर चार योजन है, तथा इससे इनका आकार गोपुच्छ के समान है । (३५६)
एषां मूले परिक्षेपोऽधिकानि पंचविंशतिः । . मध्येऽष्टादश मौलौ च योजनान्यर्कसंख्यया ॥३५७॥ . इनकी परिधि मूल में पच्चीस योजन से कुछ अधिक है, मध्य में अठारह योजन से कुछ अधिक है और ऊपर बारह योजन से कुछ अधिक है । (३५७)
तथोक्तम् - पण विसद्वार सवारसेव मूले अमज्झि उवरि च । . .सविसेसाई परिरओ कूडस्स इमस्स बोधत्वो ॥३५८॥
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भी कहा है कि - इसका घेराव, मूल, मध्य और ऊपर अनुक्रम से पच्चीस, अठारह और बारह योजन से कुछ विशेष है । (३५८) ___ अयं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्राभि प्रायः ॥जिन भद्र गणि क्षमा श्रमणैः तु अष्टु सहकूड सरिसा सव्वे जम्बूण या भणिया ।इत्यस्यां गाथायां ऋषभ कूट समत्वेन भणित्तत्वात् मूले द्वादश योजनानि अष्टौ मध्ये चत्वारि च उपरि आयाम विष्कम्भेत्यादि ऊचे ॥ तथैव मलय गिरि पादैः व्याख्यात मपि ॥ जीवभिगम सूत्रेऽपीत्थ मे वैषां मानं दृश्यते ॥ तत्वं बहुश्रुत गम्यम् ॥