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२- नलिना, ३- उज्जवलोत्पला और ४- उत्पला । इन नामों की वावडिया है । इस वचन से तीसरे और चौथे के नाम में फेर फार आता है, और पहले के नाम में जरा फेर फार है।
उक्त पुष्करिणी तुल्या एता अपि प्रमाणतः ।। मध्ये तथैव प्रसादो जम्बू प्रासाद सन्निभः ॥३४१॥
इन वावडियों का प्रमाण भी उपरोक्त वावड़ियों के समान है, और इन में भी जम्बू वृक्ष के प्रासाद समान प्रासाद है । (३४१)
वनेऽस्मिन्नेव नैर्ऋत्यां पंचाशद्योजनोत्तराः । यथा क्रमं पुष्करिण्यः प्राच्यादिदिक्चतुष्टये ॥३४२॥ भुंगा ,गनिभा किंचांजनाथ कज्जलप्रभा । मध्ये प्रासाद एतासां सर्वं मानं तु पूर्ववत् ॥३४३॥
इस वन के अन्दर नैऋत्य कोण में भी पचास योजन जाने के बाद चारों दिशा में चार वावडियां है । उनके १- भुंगा, २- भुंग निभा, ३- अंजना और ४- कज्जल प्रभा नाम है । इनके बीच में भी एक-एक प्रासाद है इनका प्रमाणादि सारा पूर्व के समान समझ लेना । (३४२-३४३) - आग्नेय्यां च योजनानां पंचाशतो व्यतिक्रमे । .
वनेत्रैव पुष्करिण्यो दिक्चतुष्के यथाक्रमम् ॥३४४॥
श्री कांन्ता श्री महिता व श्री चन्द्रा च ततः परम। : श्री नीलयाख्येति शेष प्रासादादि तु पूर्ववत् ॥३४५॥
प्रासादेष्वेषु चैकैकमस्ति सिंहासनं महत् । .... अनादृतस्य देवस्य क्रीडाहँ सपरिच्छदम् ॥३४६॥
उसी वन के अन्दर अग्नि कोने में भी पचास योजन छोड़ने के बाद चार दिशा में वावडिया है । वे अनुक्रम से इस प्रकार से है :- १- श्री कान्ता, २- श्री महिता, ३- श्री चन्द्रा और ४- श्री निलया । इन सब वावड़ियों में भी प्रासाद आदि पूर्व के समान समझना । प्रत्येक प्रासाद में अनादृत देव के क्रीड़ा करने के योग्य परिवार सहित बड़ा सिंहासन है । (३४४-३४६) ... "अत्र जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे सीहासणा सपरिवारा इति ।जीवा भिगमे च सीहासणं अपरिवार इति ॥"