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(३०८) अत्रान्तरे पुष्करिण्यः चतस्रः स्युश्चतुर्दिशम् । प्राच्यां पद्मा दक्षिणस्यां पद्मप्रभेति नामतः ॥३३५॥ कुमुदाख्या पश्चिमाया मुदीच्यां कुमुदप्रभा । सर्वाः क्रोशार्द्ध विष्कम्भा एक क्रोशायताश्चताः ॥३३६॥ धनः पंचशतोद्वेधाः सचतुर्धारतोरणाः । वृताः पद्मवेदिकया वन खंडेन चाभितः ॥३३७॥ कलापकं ॥
इस अति सुशोभित वन खंड में ईशान कोण में पचास योजन जाने के बाद चारों दिशाओं में चार वावडी आई है १- पूर्व दिशा में पद्मा, २- दक्षिण दिशा में 'पद्मप्रभा' ३- पश्चिम में कुमुदा' और ४- उत्तर दिशा में कुमुद प्रभा। ये सब आधा कोस चौड़ी, एक कोस लम्बी और पांच सौ धनुष्य गहरी है । प्रत्येक के.चार-चार दरवाजे है और तोरण है । इनके चारों तरफ पद्म वेदिका और बगीचा है । (३३४-३३७)
तासां चतसृणां मध्ये प्रासादः परिकीर्तितः । स च जम्बू वृक्ष शाखा प्रासाद सद्दशोऽभितः ॥३३८॥
चारों वावों के मध्य भाग में एक-एक प्रासाद है, जो जम्बू वृक्ष की शाखा में रहे प्रासाद समान है । (३२८)
एवमस्मिन्नेव वने वायव्यां दिशि योजनैः । पंचाशता पुष्करिण्यः चतस्त्रः स्युश्चतुर्दिशम् ॥३३६॥ प्राच्यामुत्पलगुल्माख्या याम्यां च नलिनाभिधा। . स्यादुत्पला पश्चिमायामुदीच्यामुत्पलोज्जवला ॥३४०॥
इसी तरह से वहां वायव्य कोण में भी पचास योजन जाने के बाद चार दिशा में वावडियां है । १- पूर्व में उत्पल्ल गुलया २- दक्षिण में 'नलिना' ३- पश्चिम में उत्पला और ४- उत्तर में उत्पलोज्जवला इस तरह उनके नाम है । (३३६-३४०)
अयं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र - जीवाभिसूत्राभिप्रायः ॥ बृहत्क्षेत्र समासे तु उप्पल भोमान लिणुज्जुष्पला य वीयं भिइति वचनात् तृतीय तुर्ययोः नाम्नि व्यत्ययः प्रथमायाः नाम्नि विशेषश्च दृश्यते । इति ज्ञेयम् ॥
यह अभिप्राय जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र का और जीवाभिगम सूत्र का है, बृहत्त् क्षेत्र समास में तो इस प्रकार कहा है कि दूसरे चतुष्क में १- उत्पल भूमा,