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________________ (३०६ ) जम्बू सहस्राश्चत्वारः तापतां कीर्तिता जिनैः । जम्ब्वश्चस्त्रः पूर्वस्यां महिषीणां चतसृणाम् ॥३२१ ॥ युग्मं ॥ सहस्राण्यष्ट चाग्नेय्यां जम्ब्बोऽभ्यन्तरपर्षदाम् । जम्बू सहस्राणि दश याम्यां मध्यम पर्षदाम् ॥ ३२२ ॥ ता द्वादश सहस्त्राणि नैऋत्यां वाह्य पर्षदाम् । प्रत्यक् च सप्त सेनान्यां परिक्षेपे द्वितीयके ॥ ३२३॥ दूसरे वलय में इस मूल जम्बू वृक्ष के वायव्य उत्तर, और ईशान इस तरह तीन दिशाओं में सामानिक देवों के चार हजार जम्बू वृक्ष है, और पूर्व दिशा में चार अग्र महिषियों के चार जम्बू वृक्ष, अग्नि कोण में अभ्यन्तर पर्षदा के आठ हजार और दक्षिण दिशा में मध्यम पर्षदा के दस हजार जम्बू वृक्ष है, और नैऋत्य कोने में बाह्य पर्षदा के बारह हजार तथा पश्चिम की ओर सेनापति के सात जम्बू वृक्षं कहे है । (३२०-३२३) जम्बू सहस्राश्चत्वारः प्रत्येकं दिक्चतुष्टये । सहस्त्राः षोडशेत्यात्मरक्षकाणां तृतीयके ॥ ३२४॥ तीसरे वलय में आत्मरक्षक देवों के प्रत्येक दिशा में चार-चार हजार अतः कुल मिलाकर सौलह हजार जम्बू वृक्ष कहे है । • यद्यप्युक्तं वलयोर्मानं नैवानयोः स्फुटम् । पूर्वाचार्यैरुच्चतादेः प्राज्ञैः ज्ञेयाः तथापि हि ॥ ३२५॥ श्री देवी पद्मदृष्टान्तात् प्रथमाद्वलयादिह । अर्धार्धमानका जम्ब्वो ऽनयोर्बलययोर्द्वयोः ॥ ३२६ ॥ जो कि इस दूसरे और तीसरे वलय में रहे इन वृक्षों की ऊंचाई आदि का मान पूर्वाचार्यों ने कुछ कहा नही है, फिर विद्वानों ने श्री देवी के कमल के दृष्टान्त पर भी ये दूसरे तीसरे वलय में आया है, उन वृक्षों का मान पूर्व के वलय के वृक्षों से आधा आधा है इस प्रकार समझ लेना चाहिए। (३२५-३२६) तथाहु:- जिन भद्र गणि पादाः क्षेत्र समासं - पउम दहे सिरीए जो परिवारो कमेण निछिट्टो | सो चेव य नायत्वों जम्बू एणा ढियसुरस्स ॥३२७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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