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(३०५) यथा द्वादशभिः पद्म वेदिकाभिः स वेष्टितः । तथामी निखिला षड्भिवैदिकाभिरलंकृताः ॥३१८॥
मूल जम्बू वृक्ष के आस-पास जिस तरह बारह पद्म वेदिका है, उसी तरह इन सर्व के परिवेष्टन मण्डलाकार छ: वेदिकाए हैं । (३१८) ।
श्री देवी पद्मवच्चैते सर्वेऽनादतनाकिनः । स्वीयाभरणसर्वस्वनिक्षेप वणिगापणाः ॥३१६॥
श्री देवी के दूसरे वलय की कमल पंक्ति समान ये सारे वृक्ष 'अनादृत' देव को अपने आभूषण आदि सर्व वस्तु रखने वाली व्यापारी की दुकान समान है। (३१६)
_ "एतेषु च १०८ जम्बू वृक्षेषु श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति - श्री जीवाभिगम क्षेत्र विचारादौ सूत्र कृदभिः वृत्तिं कृदभिश्च जिन भवन प्रासाद चिन्ता न कापि चक्रे । बहवो बहुश्रुताः श्राद्ध प्रति क्रमण चूर्णिकारादयः शाश्वत जिन स्तोत्र कर्तृ श्री जयानन्द सूरि प्रभृयत श्च मूल जम्बू वृक्षवत् प्रथम वलय जम्बूवृक्ष प्रथम खंडगत कूट काष्टक जिन भवनैः सह जम्बू वृक्षे सप्तदशोत्तरं जिन भवनानां शतं मन्यमाना इहापि एकैकं सिद्धायतनं पूर्वोक्तं मानं मेनिरे । ततः अत्र तंत्वं केवलिनो विदुः । इति जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ ॥"
इस एक सौ आठ जम्बू वृक्षों में जिन भवन अथवा प्रासाद आदि कुछ है, या नहीं है, इस विषय में सूत्रकार या टीकाकारों ने जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति, श्री जीवाभिगम सूत्र अथवा क्षेत्र विचार आदि ग्रन्थों में कोई भी उल्लेख नहीं किया है । परन्तु श्राद्ध प्रतिक्रमण की चूर्णी के कर्ता आदि बहुश्रुतो ने तथा शाश्वत जिन की स्तुति के रचयिता श्री जयानंद सूरि जी आदि मूल जम्बू वृक्ष पर, तथा इसके आस पास के प्रथम वलय में रहे जम्बू वृक्षों पर, तथा प्रथम के वनखंड में रहे आठ कूट पर, इस तरह सर्व मिलाकर एक सौ सत्तर जिन भवन मानने के साथ में यहां पर भी पूर्वोक्त प्रमाण वाला एक-एक सिद्धायतन मानते है, तो ये दो प्रकार की बात में सत्य क्या है, वह केवली ज्ञानी जाने । इसके अनुसार जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में कहा है कि
मूलजम्बूतरोस्तस्माद्यथाक्रमं दिशां त्रये । वायव्यामुत्तरस्यांचैशान्यां च तुल्य नाकिनाम् ॥३२०॥