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( ३०४ )
चतुर्दिग्गत शाखान्तः शाखा या विडिमा भिधा ।
तस्या मौलौ मध्यभागे सिद्धायतनमुत्तमम् ॥३११॥
चारो दिशाओं में फैली चार शाखाओं के अन्दर बीच में विडिम नाम की शाखा की है उसके शिखर के मध्य भाग में एक उत्तम 'सिद्धायतन' है । (३११)
विष्कम्भायामतश्चैवतत् प्राक् शाखा भवनोपमम् । देशोनकोशमुत्तुंगं पृथुद्वारत्रयान्वितम् ॥३१२॥
तस्य मध्ये महत्येका शोभते मणि पीठिका ।
धनुः पंचाशतायाम व्यासा तदर्ध मेदुरा ॥ ३१३॥
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इस सिद्धायतन की लम्बाई-चौड़ाई पूर्व दिशा की शाखा के भवन अनुसार से है, और ऊंचाई एक से कुछ कम है । और इसके तीन दरवाजे है, इसके मध्य भाग में एक मोटी मणि पीठिका है जो पांच सौ धनुष्य लम्बी-चौड़ी और इससे आधी मोटी है । (३१२-३१३).
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उपर्यस्या महानेको देवच्छन्दक आंहितः । पंचचापशतायाम विष्कम्भः सर्वरत्नजः ॥ ३१४॥
सातिरेक धनुः पंचशतोत्तुंगाऽथ तत्र च । अष्टाधिकं जिनार्चानां शतं वैताढ्य चैत्यवत् ॥३१५॥ युग्मं ॥
उस मणि पीठिका के ऊपर एक मोटा सर्व रत्नमय देवच्छन्दक है, जो पांच
सौ धनुष्य लम्बा-चौड़ा और इससे कुछ विशेष ऊंचा है, इसमें वैताढ्य के चैत्य समान एक सौ आठ जिन बिम्ब-प्रतिमायें विराजमान है । (३१४-३१५)
एवमुक्तस्वरूपोऽयं जम्बू वृक्षः समन्ततः ।
भात्यष्टाग्रेण जम्बूनां शतेन परिवेष्टितः ॥ ३१६॥
उपरोक्त स्वरूप वाले इस जम्बू वृक्ष के चारों तरफ मण्डलाकार एक सौ आठ और जम्बू वृक्ष वहां पर है । (३१६)
अमी आद्यपरिक्षे पगता जम्बूमहीरुहः 1 मूलजम्बूतरोरर्धमाना भवन्ति सर्वथा ॥३१७॥
प्रथम घेराव में जितने जम्बू वृक्ष है उन सब का मान मूल जम्बू वृक्ष से आधा है । (३१७)