SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०३) "यद्यपि विषमाया मविष्कम्भं भवनं श्रीदेव्यादि भवनवत् समायाम विष्कम्भः प्रासादः विजयादि प्रासादवत् इति भवन प्रासादयो विशेष आमनन्ति तथापि श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र - श्री जिनभद्र गणि क्षमा श्रमण कृत समास - श्री उमा स्वाति वाचक कृतजम्बूद्वीप समास श्री सोमतिलक सूरिकृत नव्य बृहत् क्षेत्रसमासादिषुएतेषांवक्ष्यमाणवनगतानांच प्रासादतयाव्यपदिष्टत्वात् क्रोशयाम क्रोशार्द्ध विष्कम्भत्वस्य च उक्तत्वात् जम्बू प्रकरणे प्रासादा अपि विषमा याम विष्कम्भा इति ध्येयम् । इति अर्थतः उपाध्याय श्री शान्ति चन्द्रो पज्ञजम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ ॥" "यद्यपि जिसकी लम्बाई-चौड़ाई विषय हो वह भवन कहलाता है । जैसे श्री देवी-लक्ष्मी देवी का भवन । और सामान्य लम्बाई चौड़ाई हो वह प्रासाद कहलाता है, जैसे कि विजय देव आदि का प्रासाद है। इस प्रकार भवन और प्रासाद में फेरफार गिना जाता है। फिर भी जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र श्री जिनभद्रगणि क्षमा श्रमण कृत क्षेत्र समास की टीका; श्री उमास्वाति वाचक कृत जम्बू द्वीप समास और श्री सोम तिलक कृत नया वृहत् समास आदि में उन्होंने वक्ष्यमाण वनगत भवनो को प्रसाद रूप में गिना है । इससे इनकी लम्बाई एक कोस तथा चौड़ाई आधे कोस कही । इसलिए यह जम्बू वृक्ष के प्रकरण में प्रासाद भी विषम लम्बाई-चौड़ाई वाला है । इस तरह समझना । ऐसा भावार्थ श्री शान्तिचन्द उपाध्याय कृत जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति में कहा है।" "जीवाभिगम सूत्रे तु एषामपिसमायाम विष्कम्भत्वमेवदृश्यते।तथा च तद्ग्रन्थः । तत्थजे से दाहिणिल्ले साले एत्थणंएगेमहं पासायावडिंसएपण्णते कोसं च उर्दू उच्चतेणं उद्ध कोसं आयाम विख्खं मेणं इति ॥" ___ 'श्री जीवाभिगम सूत्र में तो उनके भी समान लम्बाई चौड़ाई देखने में आती है । इस सूत्र में जो पाठ है, उसका अर्थ इस प्रकार है - दक्षिण दिशा में जो वृक्ष है, उसमें एक महान प्रासाद कहा है, वह ऊंचाई में एक कोस तथा लम्बाई-चौड़ाई में आधा कोस है।' __"शेषप्रासाद सूत्राणि अपि अस्यैव सूत्रस्य अति देशेन उक्तानि इति ज्ञेयम।" 'शेष प्रासाद सूत्रों में भी इसी ही सूत्र को अति देश से कहा गया है। इस तरह से समझना।'
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy