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________________ (३०२) एवं चोभयतः शाखादैर्घ्य स्कन्धोर्वतान्विते । विष्कम्भायामतः सोऽयं भवेत् पूर्णाष्ट योजनः ॥३०४॥ इसी तरह स्कन्ध की चौड़ाई और शाखाओं की दोनो तरफ की लम्बाई गिनते इस जम्बू वृक्ष की चौड़ाई भी सम्पूर्ण आठ योजन की होती है । (३०४) शाखायाः प्रसृतायाप्राक मध्येभागे विराजते । अनादृतस्य देवस्य भवनं रल निर्मितम् ॥३०॥ अनेकरत्नस्तम्भाढयं क्रोशमायामतो मतम् । विष्कम्भतसतु क्रोशार्धं देशोनं क्रोशमुन्नतम् ॥३०६॥ युग्मं ॥ .. इस जम्बू वृक्ष को पूर्व तरफ फैली हुई शाखा के बीच 'अनाद्दत' देव का अनेक रत्नमय भवन शोभायमान हो रहा है । (३०५) वह भवन लम्बाई में एक कोस, चौड़ाई में आधा कोस और ऊंचाई में एक कोस से कुछ कम है। (३०६) धनु:पंचशतोतुंग तदर्थं पृथुलं कमात् । प्राच्युदीची दक्षिणासु द्वारमेकै कमत्र च ॥३०७॥ इसके पूर्व, उत्तर और दक्षिण दिशा में तीन दरवाजे हैं, वे प्रत्येक पांच सौ । धनुष्य ऊंचे तथा अढाई सौ धनुष्य चौड़े है । (३०७) धनुः पंचाशतायाम विष्कम्भा मणिपीठिका। तदर्धमान बाहल्या तत्र शय्या विराजिता ॥३०८॥ वहां एक मणि पीठिका है, वह पांच सौ धनुष्य लम्बी चौड़ी है, और अढ़ाई धनुष्य मोटी, और वहां एक शय्या शोभायमान हो रही है । (३०८) शेष शाखासु तिसृषु स्युः प्रासादावतंसकाः । प्राक् शाखा भाविभवनानुकाराः सर्वमानतः ॥३०६॥ सर्वरत्नमयामविष्कम्भा मणि पीठिका । अनादृतस्वर्गियोग्य सिंहासन विभूषिताः ॥३१०॥ युग्मं ॥ शेष तीन शाखाओं में भी महान प्रासाद है । उनका प्रमाण पूर्व की ओर शाखा में रहे भवन समान ही है, वे सर्व प्रकार के रत्नों से युक्त है, देदीप्यमान कान्ति के कारण से चमकदार मणि पीठिका है । वह अनादृत देव के सिंहासन से अलंकृत है । (३०६-३१०)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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