SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०१) पत्राणि तस्य वैडूर्यमयानि जगदुः जिनाः । तपनीय वृन्तवन्ति गुच्छा जाम्बूनदोद्भवाः ॥२६७॥ रजतोत्थास्तप्रवालांकुरा:पुष्पफलावली । नाना रत्नमयी जम्बूतरूरिद्दक् श्रुतः श्रते ॥२६८॥ चारो तरफ से फैली हुई विशाल शाखाओं के मध्य में स्कन्ध में से निकली हुई 'विडिम' नामक एक ऊंची शाखा है, वह चान्दीमय है, इसके पत्ते वैडूर्य रत्नमय है, गुच्छ सुवर्णमय और डोंडी भी सुवर्णमय है, इसके प्रवाल के अंकुर चांदीमय और पुष्प तथा विविध रत्नमय है । (२६६-२६८) . शाखा प्रभवपर्यन्तः स्कन्धः कन्दाद्य ऊर्ध्वगः । द्वे योजने स उत्तुंगो विस्तीर्णः क्रोश योर्द्वयम् ॥२६६॥ इस जम्बू वृक्ष के कंद से ऊपर शाखा निकलती है वहा तक का विभाग तो स्कंध कहलाता है, वह दो योजन ऊंचा और दो कोस चौड़ा है । (२६६) या दिक् प्रसृत शाखान्तर्जाता शाखोर्ध्वगामिनी । विडिमापरपर्याया सोत्तुंगा योजनानि षट् ॥३००॥ चारों तरफ फैली हुई शाखाओं के अन्दर 'विडिम' नाम की सर्व से ऊंची शाखा है, वह छः योजन की ऊंची है । (३००) एवं च कंदादारभ्य सर्वाग्रेणाष्टयोजनीम् । जम्बू तरूः समुतुंगोभूमग्नः क्रोशयोर्द्वयम् ॥३०१॥ इसी तरह यह जम्बू वृक्ष कंद से ऊपर तक आठ योजन ऊंचा है । और दो कोस पृथ्वी के अन्दर गहरा है । (३०१) या तस्य प्रसृता स्कन्धाच्छाखा दिक्षु चतसृषु । पूर्वादिषु किलैकैका शिष्य शाखा गुरोरिध ॥३०२॥ क्रोशेनोनानि चत्वारि योजनान्यायताश्चताः । प्रत्येकं चित्रकृतः पत्रफलपुष्पाद्यलंकृताः ॥३०३॥ युग्मं ॥ इस वृक्ष के स्कंध में से चार दिशाओं में फैली, गुरु की शिष्य परम्परा समान चार शाखा है, उन प्रत्येक की लम्बाई चार योजन में एक कोस कम है । और ये प्रत्येक विविध जाति के पत्र पुष्प और फल से अलंकृत है । (३०२-३०३)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy