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________________ . (३००) . . तोरणानामुपर्येषामुत्तरंगेषुसन्ति वै । अष्टावष्टौ मंगलानि तथा ततोरणोपरि ॥२८६॥ ." दण्डा वज्रमयाः पंच वर्णाश्च चामर ध्वजाः । पताकातिपताकाश्च छत्रातिछत्रकाणि च ॥२६॥ भूयांसि घण्टायुग्मानि भूयांस उत्पलोच्चयाः । भूयांसः पद्मकुमुदनिकराः सन्ति रलजाः ॥२६१॥ विशेषाकं ॥ दरवाजे की चोखट के ऊपर रहे तोरण में अष्ट मंगल, तथा उस तोरण के ऊपर भाग में वज्रमय दण्ड, पंच वर्ण के चमर और ध्वजाएं, पताकाओं पर पताकायें और छत्र पर छत्र शोभायमान हो रहा है, तथा अनेक विशाल घंटै कमल और समूहबद्ध रत्नमय पद्म और कुमुद लगे हुए है । (२८६-२६१) • मध्यभागेऽस्य पीठस्य स्याच्चतुर्योजनोन्नता । : योजनान्यष्ट विस्तीर्णयतैका मणिपीठिका ॥२६२॥ .. इस जम्बू द्वीप के मध्यभाग में एक मणि पीठिका है, वह चार योजन ऊँची और आठ योजन लम्बी-चौड़ी हैं । (२६२) उपर्यस्याः पीठिकाया जम्बू वृक्षोऽस्ति वेष्टितः। वेदिकाभिःदशभिःप्राकाराकारचारूभिः ॥२६३॥ उस पीठिका पर पूर्वोक्त जम्बू वृक्ष आया है, उसके आस-पास किले के आकार वाली बारह वेदिका शोभायमान होती है । (२६३) अथास्य जम्बू वृक्षस्य मूलं वज्रमयं मतम् । मूलादुपरि यः कन्दो भू मध्यस्थः स रिष्टजः ॥२६४॥ स्कन्धः कन्दादुत्थितो यः स तु वैडूर्य रत्लजः । सुवर्ण मय्यस्तच्छाखाः प्रशाखा जातरूपजाः ॥२६॥ इस जम्बू वृक्ष का मूल वज्रमय है, इसके मूल जड़ से ऊपर पृथ्वी के मध्य में कंद है, वह रिष्ट रत्नमय है, और कंद में से निकला हुआ स्कन्ध वैडूर्य रत्नमय है, इसकी शाखाए सुवर्णमय है, और प्रशाखाएं रक्त सुवर्णमय है । (२६४-२६५) शाखानां दिक्प्रसूतानां मध्ये स्कन्धात्समुत्थिता । योर्ध्व शाखा विडिमाख्या सोक्ता रजत निर्मिता ॥२६६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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