SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६६) पीठस्यास्य मध्यभागे वाहल्यं परिकीर्तितम् । योजनानि द्वादशान्त्यभागेषु क्रोशयोर्द्वयम् ॥२८२॥ इस जम्बू वृक्ष की पीठ लम्बाई चौड़ाई में पांच योजन है और इसका घेराव पंद्रह सौ इकासी योजन से कुछ अधिक है, इसकी मोटाई मध्य भाग में बारह योजन की और अन्तिम में दो कोस की है । (२८१-२८२) तदेक या पद्मवेदिकया वनेन च । समावृतं तन्मानादि जगतीवेदिकावत् ॥२८३॥ इस पीठ के आस पास एक पद्म वेदिका तथा सुन्दर बगीचा है, इसका मान आदि जगती की वेदिका के समान जानना । (२८३). दिक्षु पूर्वाद्यासु तस्य जम्बूपीठस्य तीर्थपैः । एकैकं द्वारमुक्तं त्रिसोपानप्रतिरूपकम् ॥२८४॥ इस जम्बू पीठ की पूर्वादि चार दिशाओं में तीन-तीन सोपान वाला एक-एक द्वार कहा है । (२८४) तदेक क्रोश विस्तीर्णं क्रोशद्वय समुच्छ्रितम् । वज़रत्नमयैर्भूमि · मूलभागैर्मनोहरम् ॥२८५॥ भूमेरूज़ प्रतिष्ठान भूतैश्चरिष्टरलजैः । प्रदेशैः शोभितं वर्यवैदूर्यस्तम्भवन्धुरम् ॥२८६॥ सुवर्णरूप्यफलकै : वैदूर्यसन्धिबन्धुरैः । रत्नालम्बन बाहाभिः रत्लालम्बनकैः युतम् ॥२८७॥ विशेषकं ॥ इस तरह इसके चार द्वार है, ये चारो द्वारं एक-एक कोस चौड़ा और दो-दो कोस ऊँचा है । इसके मूल के पास की धरती वज्र रत्नमय है । इसके आस-पास का भूमि प्रदेश रिष्टरत्नमय है.। और इसके स्तंभ वैडूर्य रत्नमय है । इन द्वारों के किवाड़ वैडूर्य रत्न लगे हुए सोने चान्दी के हैं। लटकते रत्नों से युक्त इसकी बाहा है। और इसके ऊपर रत्नों के झूमने वाला गुच्छा शोभायमान हो रहा है । (२८५-२८७) द्वारेषु तेषु सर्वेषु प्रत्येकं तोरणं भवेत् ।। रत्नस्तम्भसन्निविष्टं वृषभाश्वादि चित्रयुक्त ॥२८८॥ इन चारों द्वारों में रत्नमय स्तंभों पर लगाये गये वृषभ, अश्व आदि नाना प्रकार के चित्र वाले तोरण लगे हैं । (२८८)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy