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सपरिच्छदमेकैकं तत्र सिंहासनं स्फुरत् । ऐश्वर्य भुजते तेषु निर्जराः कांचनाभिधाः ॥२७५॥ .
सभी प्रासादों में बड़े परिवार वाले सिंहासन शोभायमान हो रहे हैं । इनका कांचन नाम का देव ऐश्वर्य पूर्वक उपभोग कर रहा है । (२७५)
ऋद्धिश्चैषां विजयवदायुः पल्योपमं स्मृतम् ।। मेरोरूदग राजधान्यो जन्बू द्वीपे परत्र च ॥२७६॥
इस कांचन देव की समृद्धि विजय देव के समान है, इसका आयुष्य एक . पल्योपम का कहा है, और इसकी राजधानी दूसरे जम्बूद्वीप के मेरू पर्वत के उत्तर में कही गयी है । (२७६)
अथोत्तरकुरुक्षेत्रस्थिता जम्बूर्निरूप्यते । . सुदर्शनाख्या यन्नाम्ना जम्बूद्वीपोऽयमुच्यते ॥२७७॥ :
इस उत्तर कुरु क्षेत्र में 'सुदर्शन' नाम का जम्बू द्वीप वृक्ष आया है, उसका वर्णन करता हूँ । जिस जम्बू वृक्ष पर उसका जम्बू द्वीप नाम पड़ा है । (२७७)
उत्तराः करवो द्वेधा विभक्ताः शितया किल । पूर्वापरार्धभावेन सीमन्तेनालका इव ॥२७८॥
बालो जैसे मांग के कारण से दो विभाग में बंटवारा हो जाता है, इसी तरह यह उत्तर कुरुक्षेत्र शीतानदी के कारण से १- पूर्व-उत्तर कुरु और २- पश्चिम उत्तर कुरू इस प्रकार दो विभाग में बांटा गया है । (२७८) तत्र च - दक्षिणस्यां नीलगिरेः उदीच्यां मन्दराचलात् ।
पश्चिमायां माल्यवतः शीतायाः प्राक्तने तटे ॥२७॥ उदक्कुरूप्राक्तनार्धमध्यभागे निरूपितम् । जाम्बूनदमयं जम्बू पीठं नम्रसुरासुरैः ॥२८०॥ युग्मं ॥
उत्तर कुरू क्षेत्र के पूर्वाद्ध के मध्य विभाग में नील गिरि से दक्षिण दिशा में, मेरू पर्वत से उत्तर दिशा में, और माल्यवान पर्वत से पश्चिम दिशा में शीता नदी के पूर्वतट पर, सुवर्णमय जम्बू पीठ आया है । इस प्रकार श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (२७६-२८०)
शतानि पंच विष्कम्भायामौ परिधिरस्य च । । एकाशीत्यधिकं सार्ध सहस्रं किंचनाधिकम् ॥२८१॥