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(२६५) . द्वीतीयस्तूत्तरकु रुसंस्थानाब्जादि मत्तया । तुल्याख्यव्यन्तरावासाद्यद्वोत्तरकु रुहृदः ॥२५५॥
दूसरा उत्तर कुरु नाम का सरोवर है, उसमें उत्तर कुरु समान कमल पुष्प होने से अथवा उत्तर कुरु नामक व्यन्तर का वास होने से, इसका नाम यह पड़ गया है । (२५५) . चन्द्राभशतपत्रादि मत्वाच्चन्द्राभिधोहृदः ।
व्यन्तरेन्द्र चन्द्रदेवस्वामित्वाद्वातृतीयकः ॥२५६॥
तीसरा चन्द्र नाम का सरोवर है । उसमें चन्द्रमा समान आभा (कान्ति) वाले कमल आदि होने से अथवा चंद्रदेव नाम का व्यन्तरेन्द्र स्वामी होने से वह इस नाम से प्रसिद्ध है । (२५६)
ऐरावताकार हारिपद्यादि मत्तयाथवा । व्यन्तरैरावताढयात्वात्तुर्यश्चैरावतो हृदः ॥२५७॥
चौथा ऐरावत नाम का जलाशय है, इसमें ऐरावत के आकार के मनोहर कमल होने अथवा इनके नाम के स्वामी व्यन्तरदेव का ऐरावत नाम होने से यह नाम . पड़ गया है । (२५७) .
. माल्यवत्पर्वताकाराम्बुजादिमत्तयाथवा ।
माल्यवद्वयन्तरावासात् पंचमो माल्यवान् हृदः ॥२५८॥
पांचवा माल्यवान नाम का सरोवर है, इसमें माल्यवान पर्वत के आकार के कमल आदि होने से अथवा इसमें माल्यवान नाम के व्यन्तर देव का निवास होने से यह माल्यवान सरोवर कहलाता है । (२५८)
पद्महदसमाकाराः सर्वे सहोदरा इव । तथैव पद्मवलयैः षड् जातीयैरलंकृताः ॥२५६॥
ये सर्व सरोवर पद्म सरोवर के समान हैं और सारे सहोदर भाई सद्दश एक समान है तथा कमल के छ: वलय से अलंकृत है । (२५६)
विशेषस्तु पद्महृदः परिक्षिप्तः समन्ततः । एकेन वनखण्डे न पद्म वेदिकयैकया ॥२६॥ विभक्ताभ्यां प्रविश्यान्तर्विनिर्यान्त्या च शीतया । अभी पद्म वेदिकाभ्यां वनाभ्यां च परिष्कृताः ॥२६१॥