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________________ (२६४) . नीलवान और यमक पर्वत के बीच में जितना अन्तर कहा है, उतना ही अन्तर यमक पर्वत और इसके दोनो सरोवर के बीच में है । (२४८) परस्परं हृदानां च तावदेवोक्तमन्तरम् । अन्त्यहृदात्तातैव क्षेत्रपर्यन्तभूरपि ॥२४६॥ इन चारों सरोवरों का परस्पर अन्तर भी उतना ही कहा है और इस क्षेत्र की पर्यन्त भूमि भी अन्तिम कुंड के समान ही है । (२४६). एवं च - यमक हृददीर्घत्वैः सप्तभिश्च तथान्तरैः। . यथोक्तमुत्तर कुरु व्यासमानं प्रजायते ॥२५०॥ और वह इस प्रकार यमक और पांच जलाशय की लम्बाई और.सात अन्तरा इन सब का जोड़ करने से उत्तर कुरु का यथोक्त व्यास आता है.। (२५०) तदुक्तम् - जावइयंमि पमाणमि होंति जमगाओ नीलवंताओ। तावइयमंतरं खलु जंगगदहाणं दहाणं च ॥२५१॥ अन्य स्थान पर कहा है कि यमक और नीलवान पर्वत के बीच में जितना अन्तर है, उतना ही अन्तर यमक और इसके प्रथम जलाशय बीच में तथा परस्पर कुंड के बीच में है । (२५१) - अथाभ्यां यमकाद्रिभ्यां दक्षिण स्यांसमान्तराः । शीतायाः सरितो मध्ये हृदाः पंच यथोक्रमम् ॥२५२॥ अब यह यमक पर्वत से दक्षिण दिशा में, शीता नदी के अन्दर एक समान अन्तर से अनुक्रम से पांच सरोवर आए है । (२५२) प्रथमो नीलवन्नामा नीलवदगिरिसन्निभैः । शोभितः शतपत्राद्यैस्तत्तथाप्रथिताभिधः ॥२५३॥ यद्वा नागकु मारेन्द्रो नीलवन्नाम निर्जरः । पालयत्यस्य साम्राज्यमित्येवं प्रथिताभिधः ॥२५४॥ वह इस तरह :- प्रथम सरोवर नीलवान नाम का है । नीलवान पर्वत के समान शतपत्र कमल आदि से वह शोभायमान हो रहा है अतः वह इस नाम से प्रसिद्ध है, अथवा नीलवान नामक नागकुमारों के इन्द्र देव का वहां साम्राज्य है, इस कारण से इस नाम से पहिचाना जाता है । (२५३-२५४)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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