SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६२) . . F .. म ताद्दशा एव तिर्यंचः तत्र हिंसादिवर्जिताः । पालयित्वा युग्मधर्मं गच्छन्ति नियमाद् दिवम् ॥२३५॥ .. आहारन्त्यमी षष्ठान्तरमित्थं यथागमम् । अन्ययुग्मितिरश्चामप्याहारेऽन्तरमूह्यताम् ॥२३६॥ वहां के तिर्यंच भी हिंसा उपद्रव आदि से रहित है, और वे भी वहां के मनुष्यों के समान अपना युगलधर्म का पालन कर, मृत्यु के बाद स्वर्ग में ही जाते है । ये तिर्यंच दो दिन के बाद आहार लेते हैं । इस तरह अन्य युग्मि तिर्यंचों का भी आहार का अन्तर आगम में कहा है उसके अनुसार समझ लेना । (२३५-२३६) पंचेन्द्रियतिरश्चां यद्वल्भने परमान्तरम् । ... भाषितं षष्ठरूपं तदेषामेव व्यपेक्षया ॥२३७॥.... वह इस तरह कहा है कि - पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो दिन के अन्तर (वाद) में आहार लेते है, वह कुरु क्षेत्र के सम्बन्ध में कहा है । (२३७) तथोक्त । पंचिन्द्रिय तिरिनराणं सहाविय छट्ठ अट्ठमओ। . इत्यादि । इस सम्बन्ध में कहा है कि - वहां पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य अनुक्रम से दो दिन के अन्तर में और तीन-तीन दिन के अन्तर में आहार लेते हैं। कालः सदात्र सुषमसुषमाख्यः प्रवर्तते । बृद्धः साधुरिव क्षेत्र परावृत्ति पराङ् मुखः ॥२३८॥ क्षेत्र परावर्तन से पराङ्ग मुख वृद्ध साधु के समान यह हमेशा ‘सुषमसुषम' नामक आरा रहता है । (२३८) क्षेत्रऽस्मिंश्च नीलवतो गिरेर्दक्षिणतः किल ।। योजनानां शतान्यष्टौ चतुस्त्रिंशतमेव च ॥२३६॥ चतुरः साप्तिकान् भागानतिक्रम्य स्थिताविह । यमकाख्यौ गिरी शीता पूर्वपश्चिमकूलयोः ॥२४०॥ युग्मं ॥ इस क्षेत्र में नीलवान पर्वत से दक्षिण दिशा में आठ सौ चौंतीस पूर्णांक चार सप्तमांश ८३४ ४/७ योजन जाने के बाद शीता नदी के पूर्व और पश्चिम किनारे पर दो 'यमक' नामक पर्वत आये है । (२३६-२४०) मिथस्तुल्यस्वरूपौ तौ यमलभ्रातराविव । .... तदेतौ यमकाभिख्यौ कथितौ जिननायकैः ॥२४१॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy