________________
(२६१)
सदा युगल धर्माणो जना ललित मूर्तयः । गव्यूतत्रयमुत्तुंगाः कला कौशल शालिनः ॥२२८॥
वहां निरन्तर युगल धर्मी सुन्दर आकृति वाले तीन कोस ऊँचे और कला कौशल में पारंगत मनुष्य निवास करते है । (२२८)
दधानाश्चायुत्कर्षात्पूर्ण पल्योपमत्रयम् । पल्यासंख्येयभागानं पल्यत्रयं जघनयतः ॥२२६॥ षट् पंचाशत्संयुते द्वे शते षष्टकरण्डकान् । धारयन्तः क्रोधमानमायालोभाल्पताजुष ॥२३०॥ विशेषकं ॥
उनकी उत्कृष्ट आयुष्य तीन पल्योपम की और जघन्य से एक पल्योपम के असंख्यभाग कम तीन पल्योपम होती है। इनके शरीर में दो सौ छप्पन पसलियां होती है । इनको क्रोध, मान, माया और लोभ बहुत ही अल्प होता है । (२२६-३३०)
ते षोढा स्युः पद्मगन्धा मुगगन्धास्तथा समाः । सहाश्च तेजस्तलिनः शनेश्चारिण इत्यपि ॥२३१॥
उनकी छ: जातियां होती है.- १- पद्मगंध, २- मृगगंध ३- सम, ४- सह, ५- तेजस्तलिन और ६- शनैश्चर। .
सकृदष्टमभक्तान्ते तुवरीकणमात्रया । पृथ्वी कल्पद्रुम फलभोजिनो मनुजाश्च ते ॥२३२॥ एकोनपंचाशदघस्त्रविहितापत्यपालनाः । कासजृम्भादिभिस्त्यक्त प्राणा यान्ति त्रिविष्टपम् ॥२३३॥ युग्मं ॥
वे हमेशा तीन दिन के बाद एक ही बार पृथ्वी और कल्पवृक्ष के फल, अरहर के दाने जितना आहार करते है । उनचास दिन तक संतान का पालन पोषण करके फिर खांसी अथवा उबासी (जंभाई) आकर उनकी मृत्यु हो जाती है। और मृत्यु के बाद वे स्वर्ग में उत्पन्न होते है । (२३२-२३३)
.. अनन्तगुणमाधुर्यो हरिवर्षा द्यपेक्षया । ... पृथ्वी पुष्प फलादीनामास्वादरतत्र वर्णितः ॥२३४॥
वहां की पृथ्वी, पुष्प, फल आदि की मिठास-मधुरता हरिवर्ष क्षेत्र की अपेक्षा से अनन्त गुणा है । (२३४)