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________________ (२८६) . पूर्ण भद्रादुत्तरस्यां याम्यां नीलवतो गिरेः । कुटं नाम्ना सहस्रांकं ख्यातं हरिस्सहं च तत् ॥१६॥ हरिस्सह नाम से पर्वत शिखर है, वह सहस्रांक नाम से प्रसिद्ध शिखर है, वह पूर्ण भ्रद से उत्तर दिशा में है और नीलवान से दक्षिण दिशा में आया है । (१६६). एतन्नीलवतो वर्षधरस्यासन्नमीरितम् । जात्य स्वर्ण मयं दीप्रप्रभापटलपिंजरम् ॥१६७॥ यह हरिस्सह शिखर है, वह 'नीलवान' वर्षधर पर्वत के नजदीक आया है। और यह सुवर्णमय और तेजस्वी कान्ति के समूह के कारण से पिंजर (पीले) रंग का दिखता है । (१६७) योजनानां सहस्रं तत्तुंगं वृत्ताकृति ध्रुवम् । : अद्धयर्धयोजनशतद्वयमुद्वेधतो भवेत् ॥१६८॥ यह एक हजार योजन ऊँचा है, इसकी आकृति गोल है और दो सो पचास योजन जमीन के अन्दर में गहरा है । (१६८) तथ्योक्तं जम्बू द्वीपप्रज्ञप्ति वृत्तौ - :अवशिष्टं यमकगिरि प्रमाणेन नेतव्यम् । तच्चेदम् ! अट्ठाइज्जाइं जो अणं सयाई उव्वे हेणं ।' इस सम्बन्ध में जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में कहा है कि ‘शेष बात यमक गिरि के समान है अर्थात वह दो सौ पचास योजन गहरा है।' योजनानां सहस्रं च स्यान्मूले विस्तृतायतम् । मध्ये सार्द्धा सप्तशतीं शतानि पंच चोपरि ॥१६६॥ इस हरिस्सह शिखर के मूल में एक हजार योजन हैं, मध्य में सात सौ पचास योजन हैं और ऊपर के भाग में पांच सौ योजन का विस्तार है । (१६६) योजनानां त्रिसहस्त्री सद्वाषष्टिशतान्विता । . द्वे सहस्रे च द्विसप्ततयधिकाद्विशतांचिते ॥२०॥ सहस्रं साधिकैकाशीत्याढयपंचशतान्वितम् । क्रमादस्य परिक्षेपा मूले मध्ये तथोपरि ॥२०१॥ युग्मं ॥ इस शिखर का मूल भाग में घेराव तीन हजार एक सौ बासठ योजन है, मध्य भाग में घेराव दो हजार दो सौ बहत्तर योजन है, और ऊपर के विभाग का घेराव एक हजार पांच सौ इकासी योजन. का है।
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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