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________________ (२८५) नाना कुसुम गुल्मानि विधूतानि समीरणैः । कुर्वन्त्येनं कीर्णपुष्पं ततोऽयं माल्यवानिति ॥१८॥ महर्द्धिको वसत्यत्र माल्यवान्नाम निर्जरः । पल्योपमायुरिति वा यद्वासौ शाश्वताभिधः ॥१६०॥ पवन हवा से उड़े हुए विविध जाति के माल्य अर्थात् पुष्पों के गुच्छे पर्वत पर बिखरे पड़े हैं, इसके कारण से इसका नाम माल्यवान पड़ा है, अथवा वहां पल्योपम की आयुष्य वाला महर्द्धिक माल्यवान नाम का देव निवास करता है इसलिए इसका यह नाम पड़ा है । अथवा तो इसका शाश्वत ही नाम है । (१८६-१८०) सद्वैड्र्यमयश्चायं नवकुटोपशोभितः । मेर्वासन्न कूटमाद्यं सिद्धायतन संज्ञितम् ॥१६१॥ यह माल्यवान पर्वत वैडुर्य रत्नमय है इसके नौ शिखर हैं । उसमें प्रथम सिद्धायतन नाम का है, जो मेरू पर्वत के नजदीक आया है । (१६१) द्वितीयं माल्यवत् कुटं तृतीयं तु ततः परम् । भवेदुत्तर कुर्वाख्यं, तुर्यं कच्छाभिधं. मतम् ॥१६२॥ पंचमं सागराभिख्यं षष्ठं तु रजताभिधम् । शीताकुटं.पूर्णभद्रकुटं हरिस्सहाभिधम् ॥१६३॥ दूसरे शिखर का नाम माल्यवान, तीसरे का नाम उत्तर कुरु है, और चौथा कच्छ, पांचवे का नाम सागर है, छठा 'रजत' सातवां शीता कूट, आठवां पूर्ण भद्र और नौवें का नाम हरिस्सह है । (१६२-१६३) ऐशान्यां मन्दरात् पंक्त्या स्थितंकूटचतुष्टयम? । तुर्यात् पंचममैशान्यां षष्ठादक्षिणतश्चतत् ॥१६३॥ इन नौ में से चार तो मेरू पर्वत से इशान कोण में श्रेणि बद्ध रहे हैं, और पांचवा चौथे से ईशान कोने में और छठा दक्षिण दिशा में (१६४) पंचमादुत्तरस्यां च षष्ठं रजतमित्यर्थ । दक्षिणोत्तरया पंक्त्या शेषं कुटत्रयं ततः ॥१६॥ छठा शिखर पांचवें से उत्तर दिशा में है, और शेष तीन शिखर इससे दक्षिणोत्तर में पंक्तिबद्ध आए हैं । (१६५)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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