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तीसर
इस शिखर से वायव्य कोने में दूसरा 'गंधमादन' नाम का शिखर है, और इससे वायव्य कोने में तीसरा गन्धिलावती नाम का शिखर है । (१८२)
तुर्यं तूत्तरकुर्वाख्यं स्याद्वायव्यां तृतीयतः । पंचमात्तद्दक्षिणस्यां वक्रत्वेनास्य भूभृतः ॥१८३॥
तीसरे शिखर से वायव्य कोने में चौथा उत्तर कुरु नाम का शिखर है, तो पर्वत की वक्रता के कारण पांचवें शिखर के दक्षिण में आया है । (१८३)
तुरीयादुत्तरस्यां च पंचमं स्फटिकाभिधम् । ... अस्यादुत्तरतः षष्ठं लोहिताक्षाभिधं भवेत् ॥१८४॥ लोहिताक्षादुत्तरस्यां सप्तमं कुटमाहिताम् ।
आनन्दाख्यमिति सप्त कूटानि गन्धमादने ॥१८॥
चौथे शिखर से उत्तर दिशा में पांचवा 'स्फटिक' नाम का शिखर है, और इसके उत्तर में छठा 'लोहिताक्ष' नामक शिखर आता है । (१८४)
लोहिताक्ष की उत्तर दिशा में सातवा आनंद नाम का शिखर है । इस तरह गन्धमादन के सात शिखर हैं । (१८५) ,
भोगंकराभोगवत्यौ द्वयोः पंचमषष्ठयोः । दिक्कुमार्यावपरेषु कूटतुल्यामिधा सुराः ॥१८६॥
इन सात में से पांचवे और छठे शिखर पर भोगंकरा और भोगवती नाम वाली दो दिक्कुमारियां रहती हैं । शेष सिद्धायतन बिना चार शिखरों पर शिखर के नाम सद्दश नाम वाले देव निवास करते है ।
एतत्कू टाधिपदेवदेवीनां मन्दराचलात् । राजधान्योऽन्यत्र जम्बूद्वीपे वायव्य कोणके ॥१८७॥
इन शिखर के नाम वाले देव देवियों की राजधानी दूसरे जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत से वायव्य कोण में होती है । (१८७)
. अथोदवकुरुतः प्राच्यां याम्यां नीलवतो गिरेः ।
ऐशान्यांमन्दरात्कच्छात्प्रतीच्यांमाल्यवानू गिरिः॥१८॥
उत्तर कुरु से पूर्व में नीलवान पर्वत की दक्षिण दिशा में मेरू पर्वत से ईशान कोण में तथा कच्छ नाम के विजय से पश्चिम दिशा में माल्यवान् नामक पर्वत् है । (१८८)