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________________ (२८३) उत्तर कुरु की पश्चिम में और मेरु पर्वत से वायव्य कोण में रहे पर्वत हैं, वह गन्ध मादन पर्वत है । (१७७) गन्धः कोष्टपुटादिभ्यो रम्यो यदिह पर्वते । तथा क्षेत्रस्वभावेन ततोऽयं गन्धमादनः ॥१७८॥ गन्धमादन नामा च देवः पल्योपम स्थिति । स्वाम्यस्येति तथा ख्यातोऽपरं च शाश्वताभिधः ॥१७६॥ इस पर्वत पर किसी ऐसे क्षेत्र स्वभाव के कारण से कोष्ट पुट सद्दश सुगन्ध द्रव्य से भी विशेष सुगन्ध है । इस कारण से यह पर्वत गन्धमादन कहलाता है । अथवा पल्योपम आयुष्य वाला कोई गन्धमादन नाम का देव इसका स्वामी है । इसीलिए यह गन्ध मादन कहलाता है अथवा तो इस तरह समझना कि इस पर्वत का नाम शाश्वत ही है । (१७८-१७६) पीतरत्नमयश्चैष मतान्तरे हिरण्मयः । शोभितः सप्तभिः कुटै नारनोपशोभितैः ॥१८०॥ यह पर्वत पीले रत्नमय है, अथवा अन्य मतानुसार सुवर्णमय है, और वह विविध रत्नो से देदीप्यमान सात शिखरों से शोभायमान है । (१८०) ___"जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे तु अयं सव्व रयणमये इति सर्वात्मना रत्नमय उक्तः । जम्बू द्वीप समासे तु कनकमय उक्तः । बहत्क्षेत्र समासे त गिरिगंध मायणो पीयओ अ पीतकः पीतमणिमय इत्येतद् वृत्तौ ॥" _ 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में तो इस गन्धमादन पर्वत को सर्वरत्नमय कहा है। जबकि जम्बूद्वीप समास में इसे सुवर्णमय कहा है, और बृहत् क्षेत्र समास में उसकी वृत्ति में इसे पीला अर्थात् पीले मणिमय का कहा है।' तत्राद्यं मन्दरासन्नं. वायव्यां मन्दराचलात् । कूटं सिद्धायतनाख्यं तत्रोत्तुंगो जिनालयः ॥१८१॥ इस गंध मादन पर्वत के ऊपर सात शिखर हैं :- मेरू पर्वत के पास में इसके वायव्य कोने में पहला सिद्धायतन नाम का शिखर है, उसके ऊपर एक ऊँचा जिन मंदिर है । (१८१) कूटात्ततोऽपि वायव्यां कूटं स्यात् गन्ध मादनम् । स्यात् गन्धिलावती कूटं वायव्याममुतो दिशि ॥१८२॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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