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________________ (२८०) विष्कम्भो द्वेधा इति स्वयमु क्त्वा तस्मिन्नेव ग्रन्थे घातकीखण्ड पुष्करार्धाधि कारयोस्तत्रत्य नदीनां द्वि गुण विस्ताराति देशं व्याख्यानयन्तः प्रोचुः यथा जम्बू द्वीपे रोहितांशा रोहिता सुवर्ण कूलारूप्य कूलानां गाहावत्या दीनां च द्वादशानामन्तर नदीनां सर्वाग्रेण षोडशानां नदीना प्रवाहे विष्कम्भो द्वादश योजनानि सार्द्धानि उद्वेधः क्रोश मेक समुद्र प्रवेशे गाहावत्यादीनां च महानदी प्रवेशे विष्कम्भो योजनानि १२५ उद्वेधो योजने २ क्रोश २ । तदभिप्रायं न विद्यः । किंच आसां सर्वत्र समविष्कम्भकत्वे आगमवत् युक्तिः अपि अनुकूला । तथाहि । आसां विष्कम्भ वैषम्ये उभय पार्श्ववर्तिनोः विजयोपि विष्कम्भ वैषम्यं स्यात् । इष्यते च समविष्कम्भक त्व मिति ॥" ... पूज्य आचार्य श्री मलयगिरि महाराज ने क्षेत्र समास की टीका में जम्बू द्वीप के अधिकार में कहा है - "ये गाहावती आदि नदियां कुण्ड में निकलते समय तथा शीता अथवा शीतोदा में मिलते समय, सर्वत्र समान चौड़ाई और समान गहराई वाली है" इस तरह कहने के बाद फिर इसी ग्रन्थ में घातकीखंड तथा पुष्करार्द्ध के अधिकार में वहां की नदियां, दुगने विस्तार की बात करके इस तरह कहा है कि 'जम्बू द्वीप में रोहितांशा, रोहिता, सुवर्णकूला और रुप्य कूला ये चार नदियां तथा गाहावती आदि बारह अन्तर नदियां इस तरह कुल मिलाकर सोलह नदियों के प्रवाह की चौड़ाई साढ़े बारह योजन, और गहराई एक कोस है और समुद्र में प्रवेश करते समय रोहितांशा नदियों के तथा महानदी के प्रवेश करते समय, गाहावती आदि नदी की चौड़ाई सवा सौ योजन है । और गहराई अढ़ाई योजन होती है ।' इस तरह उसमें परस्पर विरोध अभिप्राय दिखता है । वह कुछ समझ में नहीं आता है । इन नदियों की चौड़ाई तो सर्वत्र समान होती है यही युक्ति अनुकूल है । क्योंकि यदि इसे कम ज्यादा मानें तो इनकी दोनों तरफ रहे विजयों की चौड़ाई भी कम ज्यादा हो जाय । यह अयुक्त होती है । जबकि ये सब विजयों की चौड़ाई तो सर्वत्र समान ही होनी चाहिए।" जगतीसन्निधौ शीता शीतोदयोस्तटद्वये । स्यादेकै कं वनमुखमेवं चत्वारितान्यपि ॥१६३॥ जगती के पास में शीता और शीतोदा के दोनों किनारे पर एक-एक वनमुख होता है । इस तरह कुल चार वनमुख हैं । (१६३)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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