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________________ (२७६) यथा गाहावती नद्याः कुण्ड गाहावतीति च । तत्र गाहावती द्वीपो भवत्येवं परेऽप्यवमी ॥१५६॥ जैसे कि गाहावती नाम की नदी का गाहावती नाम का कुंड है, और इसमें रहे द्वीप का नाम भी गाहावंती है । इसी तरह सर्वत्र समझ लेना चाहिए । (१५६) योजनानि षोडशामी विष्कम्भायाममानतः । सातिरेकाणि पंचाशत् प्रज्ञप्ताः परिवेषतः ॥१५७॥ किंच सर्वेऽप्यमी द्वीपा द्वौ क्रोशावुच्छ्रिता जलात्। पद्मवेदिकया सर्वे वनेन च विराजिताः ॥१५८॥ इस तरह बारह द्वीप हुए वे द्वीप सोलह योजन लम्बे-चौड़े हैं, और इनका घेराव पंचास योजन से कुछ अधिक है, और वे सर्व जल से दो कोश ऊँचे हैं, इन सब में पद्म वेदिका और बगीचा शोभ रहे है । (१५७-१५८) - मध्ये च तेषां द्वीपानामेकैकं भवनं भवेत् । नदीनामसद्दग्नाम्ना देव्या योग्यमनुत्तरम् ॥१५६॥ प्रत्येक द्वीप के मध्य विभाग में, उस नदी के नाम समान नाम वाली वहां रहने वाली देवी के योग्य एक-एक उत्तमवन है । (१५६) अर्धकोशव्यासमेकक्रोशायतं मनोहरम् । देशोनकोतुंग स्वदेवीशय्याविभूषितम् ॥१६०॥ प्रत्येक भवन में अर्द्धकोश चौड़ी, एक कोस लम्बी और लगभग इतनी ही ऊँची देवी की मनोहर शय्या होती है । (१६०) . एताश्च गाहावत्याद्या निम्नगा निखिला अपि । पंचविंश योजनानां शतं विष्कम्भतो मताः ॥१६१॥ साढे द्वे योजने निम्ना आरभ्य हृदनिर्गमात् । शीतशीतोदाप्रवेशपर्यन्तं सर्वतः समाः ॥१६२॥ युग्मं ॥ ___गाहावती आदि ये सर्व नदियां एक सौ पच्चीस योजन चौड़ी हैं। और सरोवर में से निकल कर शीता शीतोदा में मिलने तक इन सब की गहराई सर्वत्र समान ही अढाई योजन की है । (१६१-१६२) "यत्तु श्री मलय गिरयः क्षेत्र समास वृत्तौ जम्बूद्वीपाधिकारे एताश्च गाहावती प्रमुखा नद्यः सर्वा अपि सर्वत्र कुण्डाद्वि निर्गमे शीता शीतोदयोः प्रवेशे च तुल्य प्रमाण
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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