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चौंसठ, शिखरों में से सोलह 'सिद्धायतन' नाम के शिखरों को छोड़ देने पर शेष रहे अड़तालीस शिखर अपने-अपने नाम समान नाम वाले देवों से अधिष्ठित हैं। ये देव विजयदेव के समान महा ऋद्धि वाले है । शीता और शीतोदा की दक्षिण
और उत्तर में रहे इन देवों की राजधानियां अनुक्रम से मेरू के दक्षिण और उत्तर दिशा में है । (१४८-१४६)
गाहावती हृदावती तृतीया वेगत्यपि । शीताया उत्तर तटेस्युस्तिस्रोऽन्तरनिम्नगाः ॥१५०॥ .... शीतायाम्यतटे तप्ता मत्तोन्मत्तेति निश्चिताः । क्षीरोदाशीतस्रोता: चान्तर्वाहिनीति नामतः ॥१५१॥ .. शीतादायायाम्यतटे तस्या उत्तरतः पुनः । उर्मिगम्भीरफेनेभ्यो मालिन्योऽन्तरनिम्नगाः ॥१५२॥ युग्मं ॥
बारह अन्तर नदियों के विषय में कहते हैं । शीता नदी के उत्तर किनारे पर गाहावती, हृदावती और वेगवती अन्तर नदियां आयी हैं । शीता नदी के दक्षिण किनारे पर, तप्ता, मत्ता और उन्मत्ता नाम की अन्तर नदियां हैं । शीतोदा नदी के दक्षिण किनारे पर क्षीतादा, शीत स्त्रोता और अन्तरवाहिनी, अन्तर नदिया हैं, और शीतोदा नदी के उत्तर किनारे पर उर्मिमालिनी, गम्भीर मालिनी और फेनमालिनी नाम की अन्तर नदिया हैं । (१५२).
द्वादशानामप्यमषामेकैकं कण्डमीरितमे । स्वतुल्याख्यं नीलवतस्समीपे निषधस्यवा ॥१५३॥
इन बारह नदियों को निकालने का अपने-अपने नाम का एक-एक कुंड है और ये नीलवान अथवा निषध पर्वत के पास में होता है । (१५३)
कुण्डंपुनस्तदेकैकं विष्कम्भायामतो मतम् । सपादं योजनशतमुद्विद्धं दशयोजनीम् ॥१५४॥ परिक्षेपेण साशीति योजनानां शतत्रयम् । मध्ये च द्वीप एकैको नदीकुण्डसमाभिधः ॥१५५॥
उन प्रत्येक कुण्ड की लम्बाई-चौड़ाई सवा सौ योजन की है, और गहराई दस योजन की है, तथा घेराव तीन सौ अस्सी योजन है । प्रत्येक कुंड के मध्य में नदी तथा कुंड के नामवाला एक-एक द्वीप आता है । (१५४-१५५)