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कच्छसुकच्छयोर्मध्यस्थिते चित्रगिरौ यथा । आद्यं सुकच्छकूटं स्यात् कच्छकूटं द्वितीयकम् ॥१४२॥ तृतीयं चिकूटं स्यात् सिद्धायतनमन्तिमम् । शीत शीतोदयोरेवमुदग्रोधसि भाव्यताम् ॥१४३॥
जैसे कि कच्छ और सुकच्छ विजय के मध्य में रहा, चित्रगिरि का प्रथम शिखर सुकच्छ है, दूसरा कच्छकूट है, तीसरा चित्रकूट और चौथा अन्तिम सिद्धायतन है । शीता और शीतोदा के उत्तर किनारे पर आए हुए सर्व पर्वतों के विषय में इसी तरह समझना । (१४२-१४३)
त्रिकूटे च गिरौ वत्सकूटं निषधसन्निधौ । द्वितीयं च सुवत्साख्यं ततस्त्रिकूटसंज्ञितम ॥१४४॥ तुर्यं च सिद्धायतनं सर्वेष्वप्येवमद्रिषु ।।
शीता शीतोदयोर्याम्यतटस्थेषु विभाव्यताम् ॥१४५॥ युग्मं ॥
'त्रिकूट' पर्वत के चार शिखर इस प्रकार हैं - प्रथम निषध के पास का वत्स, दूसरा सुवत्स, तीसरा त्रिकूट और चौथा सिद्धायतन है । इसी तरह शीता और शीतोदा के दक्षिण तट पर आए सर्व पर्वतों के विषय में समझ लेना चाहिए । (१४४- १४५)
एवं चतुर्णां चतुर्णा सिद्धयतनशालिनाम् ।
कूटानां श्रेणयः शीताशीतोदोभयकूलयो ॥१४६॥ . पिधानमालिनां दिव्यकलशानामिवालयः । . .भान्त्यर्हदभिषेकाय न्यस्तानामम्बुपूर्तये ॥१४७॥ युग्मं ॥
इसी प्रकार सिद्धायतनो से मनोहर चार-चार शिखरों की पंक्तियां शीता और शीतोदा के दोनों किनारे पर हैं । ये शिखर मानो श्री जिनेश्वर भगवान के अभिषेक के लिए जल भर कर रखे, दिव्य कलशों की श्रेणी के समान शोभायमान हो रहे है । (१४६-१४७).
सिद्धायतन वर्जानि स्वस्व तुल्याख्यनाकिना । तान्याश्रितानि विजयदेववत्ते महर्द्धिका ॥१४८॥ शीता शीतोदयोर्याम्योत्तरयोर्ये सुधाभुजः । क्रमात्तेषां राजधान्यो मेरूतो दक्षिणोत्तराः ॥१४॥