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(२७३) एवं तीर्थत्रयं ज्ञेयं विजयं विजयं प्रति । स्वरूपमेषा भरत तीर्थवत् परिभाव्ताम् ॥११४॥
इस तरह से प्रत्येक विजय में तीन-तीन तीर्थ होते हैं, इनका सारा स्वरूप भरत क्षेत्र के उन तीर्थों के समान जानना चाहिए । (११४)
औत्तराहेष शीताया कच्छादि विजयेष्विमाः । राजधान्यां दक्षिणाधर्मखण्डेषु कीर्तिताः ॥११५।। क्षेमा क्षेमपुरी चैवारिष्टारिष्टवती पुरी । खड्गी मंजूषौषधिश्च पुरी च पुण्डरीकिणी ॥११६॥
शीता नदी की उत्तर दिशा के दक्षिणार्ध मध्य खण्डों के कच्छादि विजयो की इस तरह से आठ राजधानी होती है । उसके नाम इस प्रकार - १- क्षेमा, २- क्षेमापुरी, ३- अरिष्टा, ४- रिष्टवती,५- खड्गी, ६- मंजूषा, ७- औषधी और ८- पुंडरीकिणी है । (११५-११६)
शीतया दाक्षिणात्येषु वत्सादि विजयेष्विमाः । राजधान्य उत्तरार्द्ध मध्यखण्डेषु वर्णिताः ॥११७॥ सुसीमा कुण्डला चैवापराजिता प्रभंकरा । अंकावती पक्ष्मवती शुभाथ रत्नसंचया ॥११८॥
शीता नदी की दक्षिण दिशा में उत्तरार्धमध्य खण्डो में वत्स आदि विजयो की इस तरह से आठ राजधानी है - १- सुसीमा,२- कुंडला, ३- अपराजिता, ४- प्रभंकर । ५- अंकवती ६- पक्ष्मवती ७- शुभा और ८- रत्नसंचया । (११७११८)
शीतोदाया याम्यतटे पक्ष्मादिविजयेष्विमाः । उत्तरार्द्ध मध्य खण्डे राजधान्यो निरूपिताः ॥१६॥ अश्वपुरी सिंहपुरी महाख्या विजयाभिधा । अपराजितापराख्याशोका च वीतशोकिका ॥१२०॥
इसी ही तरह से शीतोदा नदी के दक्षिण किनारे में उत्तरार्ध, मध्यखंड में पक्ष्म आदि आठ विज़यों की इस प्रकार आठ राजधनी है :- १- अश्वपुरी, २सिंहपुरी, ३- महाख्या, ४- विजया, ५- अपराजिता, ६- अपसंख्या, ७- अशोका और ८- वीतशोका । (११६-१२०)