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तथाहुः क्षमा श्रमणमिश्रा :सीया इउन्ने सु सी ओ याए य जम्म विजयए सु। गंगा सिन्धु नई ओ इयरेसु य रत्तरत्तवई ॥१०॥
इस विषय में श्री क्षमा श्रमण मिश्र कहते है कि - शीता नदी के उत्तर में और शीतोदा नदी के दक्षिण में जो विजय है, उसमें गंगा और सिन्धु नदियां है। और शीता की दक्षिण में और शीतोदा की उत्तर में जो विजय है, उसमें 'रक्ता और रक्तवती' नदियां है । (१०८)
कुन्डान्येवं चतुः षष्टि द्वात्रिंशत् वृषभाद्रयः । स्वरूपमेषां भरतर्वितकुण्डर्षभाद्रिंवत् ॥१०॥
इसी तरह महाविदेह क्षेत्र में कुंड, चौंसठ और ऋषभांचल पर्वत में बत्तीस होते हैं, इनका सारा स्वरूप भरतक्षेत्र के कुंड और ऋषभाचल के समान होता है । (१०६)
चतुःषटेः तथैवासां नदीनां हृदनिर्गमात् । आरभ शीताशीतोदावाहिनीसंगमावधि ॥११०॥ सर्वं स्वरूपं भरतगंगासिन्धुसरित्समम् । प्रत्येकं परिवारोऽपि तावान् ज्ञेयो विशारदैः ॥१११॥
सरोवर में से निकल कर शीता शीतोदा के संगम तक चौंसठ नदियों का स्वरूप भी इसी तरह से, भरत क्षेत्र की गंगा सिन्ध नदियों के समान है । उनका परिवार भी उतना ही जानना चाहिए । (११०-१११)
गंगा रक्तान्यतरस्याः प्रवेशे मागधाभिधिम् । शीताशीतोदयोरन्तरस्यां तीर्थ माहितम् ॥११२॥ एवं सिन्धुरक्तवत्योोंगे प्रभासनामकम् । ... तयोर्द्वयोरन्तराले वरदामं भवेदिह ॥११३॥
गंगा नदी अथवा रक्तानदी जिस स्थान पर शीता अथवा शीतोदा नदी को मिलती है, वह स्थान मागध तीर्थ कहलाता है । इसी तरह ही सिन्धु और रक्तवती के संगम पर प्रभास नामक तीर्थ कहलाता है, और दोनों तीर्थों के बीच में वरदाम नामक तीर्थ कहलाता है । (११२-११३)