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________________ (२७१) शीतोदायाम्यकूलेऽपि विजयेष्वेवमष्टसु । निषधस्योदग्नि एकैको वृषभाचलः ॥१०१॥ इसी ही तरह 'शीतोदा' नदी के दक्षिण किनारे भी जो आठ विजय है, उसमें आए निषध पर्वत की उत्तर मेखला पर एक-एक ऋषभांचल पर्वत है (१०१) तस्याप्युभयतः कुण्डे प्राग्वद् द्वे द्वे मनोरमे । सिन्धु कुण्डं पश्चिमतो गंगा कुण्डं च पूर्वतः ॥१०२॥ ताभ्यां गंगा सिन्धु नद्यौ प्रव्यूढे उत्तराध्वना । प्राग्वद्विभिन्नवैताढये शीतोदां विशतो नदीम् ॥१०३॥ इन पर्वत की भी दोनों ओर पूर्व के अनुसार दो-दो सुन्दर कुण्ड है, पश्चिम में सिन्धु और पूर्व में गंगा कुंड है । इसमें सिन्धु कुंड में से सिन्धु और गेंशा कुंड में से गंगा नदी निकलती है । वे उत्तर दिशा में बहती हुई पूर्व के समान वैताढय को भेदन कर शीतोदा नदी में मिलती है । (१०२-१०३) इत्थमेवोत्तरतटे शीतोदासरितः किल । नितम्बे दक्षिणे नीलवतोऽस्ति वृषभाचलः ॥१०४॥ इसी ही तरह से शीतोदा नदी के उत्तर किनारे पर नीलवान पर्वत की दक्षिण मेखला पर भी ऋषभांचल पर्वत आया है । (१०४) प्राग्वद वषभ कटस्य गिरेरस्यास्ति पूर्वतः । रक्ता कुण्डं रक्तवती कुंड पश्चिम तस्ततः ॥१०५॥ एताभ्यामपि कुण्डाभ्यां निर्गत्य दक्षिणामुखे । रक्तारक्तवती नद्यौ भित्वा वैताढय भूधरम् ॥१०६॥ शीतोदायां प्रविशतः याम्येन रूजुनाध्वाना । गंगा सिन्धु श्रवन्तीभ्यामिमाः सर्वात्मना समाः ॥१०७॥ युग्मं ॥ इस पर्वत के पूर्व में, पूर्व के अनुसार रक्ताकुण्ड नामक कुण्ड है । और पश्चिम में रक्तावती नामक कुंड है । इन दोनों में से भी 'रक्ता और रक्तवती' नामक नदियां निकलती है और दक्षिण की और बहती है, फिर वैताढय पर्वत को भेदन कर सीधी दक्षिण तरफ शीतोदा नदी में मिलती है। दोनों नदियां का सारा स्वरूप गंगा और सिन्धु नदियों के समान ही समझना लेना चहिए । (१०५-१०७)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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