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तमिस्रायाः पश्चिमतः सिन्धुवैताढयभूधरम । गंगा खण्ड प्रपातायाः प्राग्विभिद्य च निर्गतो ॥४॥ . याम्यार्धे ऽपि नदीसप्तसहस्रसंश्रिते इति । सरित्सहस्त्रैः प्रत्येकं चतुर्दशभिरन्वितो ॥६५॥ शीतानदीं प्रविशतो दक्षिणाभिमुखाध्वना । .. ततो भवन्ति षट्खंडाः सर्वेऽपि विजयाइमे ॥६६॥ कुलकं ॥
इन दोनों कुन्डों में से गंगा और सिन्धु नदी दक्षिण तोरण से निकल कर दक्षिण की ओर बहती है । मार्ग में आने वाली अनेक नदियों के साथ मिलती, वैताढय पर्वत के पास में सात हजार नदियों के परिवारयुक्त बनती है। तमिस्रा गुफा की पश्चिम की सिन्धु नदी और खंड प्रपात की पूर्व गंगा नदी वैताढय पर्वत को भेदन कर दक्षिणार्ध की सात हजार नदियों को मिलाकर कुल चौदह हजार के साथ में दक्षिण दिशा में से शीतानदी में प्रवेश करती है । और इससे छह खंड होते हैं। इसी तरह सर्व विजय में समझ लेना । (६२-६६) .. .
शीताया याम्यकूलेऽपि विजयेप्वेवमष्टसु । निषधस्योदग्नितम्बे एकै को वृषभाचलः ॥१७॥
शीता नदी के दक्षिण तट पर भी जो आठ विजय है, उसमें निषध पर्वत की उत्तर में एक-एक ऋषभाचल पर्वत है । (६७)
तस्याप्युभयतः प्राग्वत् कुण्डे द्वे द्वे तथाविधे ।
प्रत्यग् रक्तवतीकुण्ड रक्ताकुण्डं च पूर्वतः ॥१८॥
पर्वत की दोनों तरफ पूर्व के समान दो-दो कुण्ड है, पश्चिम की ओर रक्तावती कुण्ड और पूर्व की ओर रक्ता कुंड है । (६८) . .
एताभ्यामपि कुण्डाभ्यां निर्गते उत्तरामुखे । रक्तारक्तवती नद्यौ भित्वा वैताढयभूधरम् ॥६६॥ शीता नदीं प्रविशतः स्वरूपं पुनरेतायोः । पूर्वोक्ताभिः नदीभिः स्यान्निः शेषम विशोषितम् ॥१००॥ युग्मम् ॥
इन दोनों कुण्डों में से भी उत्तर सन्मुख 'रक्ता' और 'रक्तवती' नाम की नदियां निकलती है, और वे वैताढय पर्वत को भेदन कर शीतानदी में मिलती है । (६६) इन दोनों नदियों का सर्व स्वरूप अल्प भी फेरफार बिना पूर्वोक्त गंगा सिन्ध नदियों जैसा ही जानना ! (१००)