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(२६१) ततो निम्ननिम्नतरा भवन्ति समभूतलात् । तत्रत्या विजयार शैलास्सरितश्च यथोत्तरम् ॥२६॥
इस प्रकार से पश्चिम विदेह की भूमि, कएं में से कोस खिंचने वाले बैल के चलने की भूमि समान, क्रमशः नीचे होती जाती है, वैसे ही वहां के विजय, नदियां और पर्वत भूतल से उत्तरोत्तर नीचे से नीचे होते हैं । (२८-२६)
माल्यवद्गजदन्तस्य पूर्वतो विजयो भवेत् । कच्छाख्यस्तस्य पूर्वान्ते सीमकृच्चित्रपर्वतः ॥३०॥
माल्यवान गजदंत की पूर्व दिशा में कच्छ नाम का विजय है। इसके पूर्व किनारे में चित्र पर्वत सीमा बन्धन करता है । (३०) दो विजय के मध्य जो पर्वत आता है उसे वक्षस्कार समझना और जो नदी आती है वह अन्तर नदी है।
ततः सुकच्छविजयस्तस्यापि सीमकारिणी । गाहावती नाम नदी महाकच्छस्ततः परम ॥३१॥ विजयस्यास्य पूर्वान्ते ब्रह्मकटाभिधो गिरिः । कच्छावतीति विजयस्ततः परमुदीरितः ॥३२॥ हृदावती नदी तस्य मर्यादाकारिणी ततः । आवर्तविजयोऽस्यान्ते नलिनीकूटपर्वतः ॥३३॥ मंगलावतविजय एतस्मात्पूर्वतो भवेत् । तस्य वेगवती नाम नदी सीमाविधायिनी ॥३४॥ विजयः पुष्कल: तस्याः पर्वतस्तस्य सीमकृत । . एकशैलगिरिस्तस्माद्विजयः पुष्कलावती ॥३५॥ विजयेस्मिन् विजयते सीमन्धरजिनोऽधुना । '. 'जगद्दीनकरः पुण्यप्रकर्ष प्राप्यदर्शनः ॥३६॥
इसके बाद 'सुकच्छ' नाम का विजय आता है, और इसकी सीमा में 'गाहावती' नाम की नदी है । उसके बाद 'महाकच्छ' नाम का विजय आता है, इसकी सीमा में ' ब्रह्मकूट ' पर्वत है । इसके बाद फिर 'कच्छावती' नाम का विजय है, और उसकी मर्यादा निश्चय करने वाली 'हृदावती' नाम की नदी आती है । फिर 'आवर्त' नाम का विजय है, इसकी सीमा पर नलिनी कूट नाम से पर्वत है । उसके बाद मंगलावर्त नाम का विजय है, उसकी सीमा पर 'वेगवती' नाम की नदी है । उसके बाद 'पुष्कल' नामक विजय है, उसकी सीमा में एक शैल