SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६०) पूर्वार्धे च विदेहानां मही करतलोपमा । ततो नद्यद्रिविजयास्समश्रेण्या स्थिता इह ॥२२॥ पूर्व दिशा की ओर के आधे विदेह में जमीन हथेली के समान सपाट है, इसलिए वहां नदियां, पर्वत और विजय सम (समान) श्रेणी में रहे है । (२२) . अपरार्धे तु धरणी वियोगिनीव हीयते । समभूमैस्समारभ्यं पश्चिमायां कमात्ततः ॥२३॥ .. विजये नलिनावत्यां व प्राख्ये चान्तवर्तिनः । सहस्रं योजनान्युण्डा ग्रामा भवन्ति केचन. ॥२४॥ ततोऽधोलौकिकग्रामा इति ते ख्यातिमैयरूः । ..... तेषामन्ते स्थिता भूमिर्भित्ती रोध्युमिवार्णवम् ॥२५॥ परन्तु पश्चिम दिशा के विदेह में तो जमीन वियोगि (विरही) स्त्री के समान क्षीण होती जाती है । अर्थात् मेरू पर्वत के पास की सपाट भूमि से लेकर पश्चिम दिशा की ओर जाते आखिर नलिनावती तथा वप्र नामक विजय के अन्तिम किनारे के आते कितने गांव तो हजार योजन नीचे विभाग में आते हैं । और इससे वे अधोग्राम के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन गांवों के आखिर का भाग मानो समुद्र को रोकने के लिए दीवार के समान जमीन है । (२३-२५) तत्रैवजगतीभित्तिर्जयन्तद्वारराजिता । . ऊर्ध्वं स्थिताधोग्रामाणां दिदृक्षरिव कौतुकम् ॥२६॥. वहीं जयन्त नाम के दरवाजे से सुशोभित जगती का किला मानो अधो गांव के कौतुक देखने के लिए खड़ा हो, इस तरह लगता है । (२६) शीतोदापि स्त्रीत्वभावा दिवाधोगामिनी क्रमात् ।। योजनानां सहस्त्रैऽब्धि याति भित्वा जगत्यधः ॥२७॥ शीतोदा नदी भी मानो स्त्री स्वभाव अनुसार अधोगमन करती एक हजार योजन नीचे विभाग में जगती- किले के अधोभाग को भेदन करके समुद्र में मिलती है । (२७) एवं च पश्चिमार्धस्य क्रमनिम्ना क्षितिर्भवेत् । कूपकोशसमाकर्षिवृषगन्तव्यभूरिव ॥२८॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy