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________________ (xxix) १०४ क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक सं० सं० । सं० . सं० २६ इन स्थानों उपभोग कर्ता | ४६ उनकी पटरानियाँ तथा उनका १३६ २७ जगती के गवाक्षों का वर्णन ८६ परिवार २८ जगती के चार दिशा के द्वारों का ६०/५० विजय नाम की सार्थकता . १३७ नाम ५१ उनकी आयुष्य स्थिति १३८ २६ प्रथम विजय द्वार का स्थान ५२ यहाँ विजय देव की राजधानी का १४१ ३० उस द्वार के र्निमाण का वर्णन स्थान ३१ उसके स्तंभों का वर्णन | ५३ उसकी लम्बाई-चौड़ाई तथा . १४२ ३२ उसके स्तंभों का वर्णन ६७ | . विष्वंभ. ३३ उसकी उम्बराओं का वर्णन | ५४ उसके कोट की ऊंचाई .... १४४ ३४ उसकी चूलिकाओं का वर्णन ५५ उसे कंगूरों आदि का वर्णन १४७ ३५ ऊपर के भाग में १६ रत्न मंडित १०१ / ५६ कोट के बाह्य द्वारों की संख्या १४८ ____ है, उनके नाम ५७ उसके ऊपर प्रासादों की १५३ ३६ द्वार ऊपर चित्रों का वर्णन लम्बाई-चौड़ाई ३७ इन द्वारों की बनावट १०५ | ५८ भूमिगत प्रासादों का विवरण १५४ ३८ इन द्वारों के आगे की भूमि भाग १०६ | ५६ उसकी राजधानी के बनों का वर्णन१५७ की बनावट १०६ ६० उन महलों के स्वामी देवों का १६२ ३६ इन द्वारों की शोभा करती विविध १०८ वर्णन __ रचनाओं का वर्णन ६१ राजधानी में स्थित पीठ बंध का १६३ ४० वहाँ स्थित मंगल कलश आदि १०६ वर्णन ' __ का विवरण ६२ मणि पीठिकाओं के बीच में १६६ ४१ उसके ऊपर के प्रासादों का वर्णन ११४ विजय देव तथा उसके परिवार के ४२ उसमें स्थित बन लताओं का वर्णन११८ सिंहासनों का वर्णन ४३ वहाँ रही पूजा सामग्री का वर्णन ११७६३ सर्व मणि प्रासादों की संख्या १८२ ४४ विजय द्वार की ध्वजाओं के विषय १२५ ६४ जीवाभिगम मत प्रमाण से प्रासादों १८३ की श्रेणि ४५ विजय द्वार के स्वामी के विषय में १२७ ६५ विजय देव की सुधर्मा सभा का १८६ ४६ वैजयन्त-जयन्त-अपराजित द्वारों १३३ ___ वर्णन का विवरण ६६ उनके द्वारों का वर्णन १८६ ४७ उसमें सामानिक देवों की संख्या १३४ ६७ उसमें मंडप तथा चौपालों का वर्णन१६० ४८ उनकी पर्षदा तथा पर्षदा के देवों १३५ ६८ प्रेक्षा मंडपों का वर्णन १६५ ' की संख्या ६६ उसमें स्थित मणि पीठिकाओं का १६६ __ वर्णन
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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