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________________ (२५५) बढ़कर दस योजन होती है । इसकी धारा पचास योजन चौड़ी और दो योजन मोटी होती है । (४४२-४४४) चत्वारियोजनशतान्यशीतिश्च तथोपरि । कुण्डस्यायामविष्कम्भौ दशोद्वेधश्च कीर्तितः ॥४४५॥ शीतोदा कुंड की लम्बाई-चौड़ाई चार सौ अस्सी योजन है और गहराई दस योजन की कही है । (४४५) चतुष्पष्टियोजनानि द्वीपोऽस्या विस्तृतायतः । योजनार्द्धमुछूितोऽभ्यो गंगावत् भवनादिकम् ॥४४६॥ उस कुंड में रहे द्वीप की लम्बाई-चौड़ाई चौंसठ योजन है और इसके जल ऊपर की ऊंचाई आधा योजन है उसके ऊपर भवन आदि जो है वह सब गंगा अनुसार जानना । (४४६) शीतोप्येवं नीलवतो निर्गता केसरिहृदात् । शीताकुण्डे निपत्यातः प्रस्थिता दाक्षिणामुखी ॥४४७॥ प्रागद्विदधती द्वेधा · पंचोत्तरकुरहदान् । नगीसहस्रैश्चतुर शीत्योदक्कुरूगै:श्रिता ॥४४८॥ प्राप्तोत्तरकु रुपान्ते भद्रसालवनं कमात् । असंप्राप्ता योजनाभ्यां द्वाभ्यां मन्दरभूधरम् ॥४४६॥ गिरेर्माल्यवतौऽधस्तात् प्रस्थिता पूर्व संमुखी । द्वेधा विदधती पूर्वविदेहान् पथि चाश्रिता ॥४५०॥ अष्टाविंशत्या सहस्ररेकै कविजयोद्गतैः । नदीनां पंचभिर्लक्षैः सद्वात्रिशत्सहस्रकैः ॥४५१॥ सर्वाग्रेणेति संयुक्ता विभिद्य जगतीतटम् । - द्वारस्य विजय स्याधो विशिति प्राच्य वारिधिम् ॥४५२॥ कुलकम् इसी तरह से नीलवान पर्वत के केसरी नाम के हृद-सरोवर में से शीता नाम की नदी निकलती है । वहां से निकल कर शीताकुंड में गिरती है, वहां से वापिस निकल कर दक्षिण सन्मुख बहती पूर्व के समान पांच उत्तर कुरु सरोवरो को दो-दो विभाग में बंटवारा करती, उत्तर कुरु की चौरासी हजार नदियों को साथ लेकर भद्रशाल वन में जाकर मेरू पर्वत से दो योजन दूर रहकर, माल्यवान
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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