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इस निषध पर्वत पर १- सिद्धायतन कूट, २- निषध कूट, ३- हरि वर्ष कूट, ४- पूर्व विदेह, ५- धृति कूट,७- शीतोदाकूट,८- अपर विदेह कूट और ६- रूचक कूट रूप नौ शिखर है और वे पूर्व के समान श्रेणिबद्ध रहे है । इसमें प्रथम शिखर पर एक चैत्य है और शेष आठ पर शिखरों के ही नाम वाले देव देवियों का निवास स्थान है । (४२०-४२२)
तिगिछिस्तु पौष्य रजस्तत्प्रधान इह हृदः । तिगिछि नामा चत्वारि सहस्राण्ययमावतः ॥४२३॥, . विस्तीर्णश्च द्वे सहस्र उद्विद्धो दशयोजनीम् । पद्म हृद समसंख्यैः पौ संशोभितोऽभितः ॥४२४॥..
तिगिछि अर्थात् पुष्परज मुख्य रूप में होने से तिगिंछ नामक एक सरोवर यहां आया है । वह चार हजार योजन लम्बा है, दो हजार योजन योजन चौड़ा है और दश योजन गहरा है । इस सरोवर में चारों तरफ पद्मसरोवर के अनुसार की संख्या में सुन्दर कमल शोभायमान हो रहे हैं । (४२३-४२४)
विष्कम्भादि तु पद्मभ्यस्तेभ्य एषां चतुर्गुणाम् । यथात्र स्यान्मूलपा चतुर्योजन सम्मितम् ॥४२५॥
इन कमलों की चौड़ाई आदि पद्म सरोवर के कमलों से चार गुणा है दृष्टान्त रूप में इस सरोवर का मूल कमल है वह उससे चार गुणा अर्थात् चार योजन का है । (४२५) .
भवनं मूल पोऽत्र श्रीदेवी भवनोपमम् । धी देवी स्वामिनी तस्य सैकपल्योपम स्थितिः ॥४२६॥
इस सरोवर के मूल कमल में भी श्री देवी के भवन सद्दश एक भवन है। उसमें एक पल्योपम की आयुष्य वाली 'घी देवी' नाम की स्वामिनी निवास करती है । (४२६)
दाक्षिणात्यतोरणेन तिगिछिदतोमुतः । ... तटिनी हरिसलिला निर्गता दक्षिणामुखी ॥४२७॥ योजनानां सहस्राणि सप्तोपरि शतानि च । चत्वारिचैक विशानि कलां च पर्वतोपरि ॥४२८॥ गत्वासौ हरिसलिलाकुण्डे पतति पर्वतात् । दक्षिणेन तोरणेन तस्मान्निर्गत्य कुण्डतः ॥४२६॥