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________________ (२५१) लक्षं चतुविंशतिश्च सहस्राणि शतत्रयम् । षट्चत्वारिंशतोपेतं धनुपृष्टं कला नव ॥४१४॥ इसका धनुः पृष्ट एक लाख चौबीस हजार, तीन सौ छियालीस योजन और नौ कला का होता है। विंशतिश्च सहस्राणि पंचषष्टियुतं शतम् । सार्द्ध कलाद्वयं ज्ञेयं बाहास्यैकैकपार्वतः ॥४१५॥ इनकी दोनों तरफ की दो बाहा है, उसमें प्रत्येक बाह बीस हजार एक सौ पैंसठ योजन और अढ़ाई कला का होता है । (४१५) कोटीनां शतमेकं द्वि चत्वारिंशच्च कोटयः । चतुः पंचाशच्च लक्षाः षट् षष्टिश्च सहस्रकाः ॥४१६॥ सैकोनसप्ततिः पंचशती तथाधिकाः कलाः । अष्टादशास्य प्रतरगणितं भूवि कीर्तितम् ॥४१७॥ युग्मं ॥ और इसका प्रतर रूप समग्र गणित एक सौ बियालीस करोड़ चौवन लाख छियासठ हजार पांच सौ उनहत्तर योजन और अठारह कला का होना बताया है। (४१६-४१७: सप्तपंचाशत्सहस्राः कोटीनां कोटयः पराः । अष्टादश तथा लक्षाः षट्षष्टि रथचोपरि ॥४१८॥ सहस्राणि योजनानां सप्तविंशतिरेवच । शतानि नव सैकोना शीतीन्यत्र भवेत् धनम ॥४१६॥ युग्मं ॥ और इसका घन क्षेत्रफल सत्तावन हजार और अठारह करोड़ छियासठ लाख सत्तासी हजार नौ सौ उन्नासी योजन का होता है । (४१८-४१६) सिद्धायतन कूटं च द्वितीय निषधाभिधम् । हरिवर्षाभिधं कूट पूर्वविदेहसंज्ञकम् ॥४२०॥ हरि कूटं धृति कूटं शीतोदा कूटमित्यपि । अपर विदेहकूट कूटं च रूचकाह्वयम् ॥४२१॥ निषधे नव कूटानि श्रेण्या स्थितानि पूर्ववत् । आधे चैत्यं देवदेव्योऽन्येषु कूटसमाभिधाः ॥४२२॥ विशेषांक
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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