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________________ (२४६) मध्येऽस्य गन्धापातीति वृत्तवैताढयपर्वतः । स्वरूपमस्य पूर्वोक्त शब्दापातिसमं समम् ॥४०१॥ इस हरिवर्ष क्षेत्र के मध्य भाग में गंधापाती नामक वृत्त वैताढय पर्वत है इसका सारा स्वरूप पूर्वकथन 'शब्दापाती' पर्वत के समान है । (४०१) पद्मनामा सुरस्त्वस्य स्वाम्येकपल्य जीवितः । स्वरूपं सर्वमेतस्य ज्ञेयं विजयदेववत् ॥४०२॥ पद्म नाम का एक पल्योपम के आयुष्य वाला देव इसका स्वामी है इसका स्वरूप पूर्वोक्त विजयदेव समान जानना । (४०२) लक्षमेक सहस्राश्च द्वादश द्वयधिका इह । हरिवर्षाभिध क्षेत्रे नद्यः प्रोक्ता जिनेश्वरैः ॥४०३॥ - इस हरिवर्ष क्षेत्र के अन्दर एक लाख बारह हजार दो नदियां है । ऐसा जिनेश्वर भगवन्त ने कहा है। क्षेत्रे पुनर्वसन्त्यत्र नरायुगलधर्मिणः । . क्रोश द्वय समुत्तुंगाः सल्लक्षणा विचक्षणाः ॥४०४॥ इस क्षेत्र में पुत्र-पुत्री रूप साथ में जन्म लेने वाले विचक्षण विद्वान चतुर युगलिक मनुष्य निवास करते हैं, उनकी काया दो कोस की होती है और इनमें उत्तम सुलक्षण होते है.। (४०४) आयुरूत्कर्षतस्त्वेषां पूर्णे पल्योपमद्वयम । .. ‘पल्योपमासंख्यभाग हीनं तच्च जघन्यतः ॥४०५॥ इनका आयुष्य उत्कृष्ट से दो पल्योपम का होता है और जघन्य से पल्योपम के असंख्यवां भाग कम दो पल्योपम होता है । (४०५) . तेऽसकृत षष्ठभक्तान्ते बदरप्रमिताशिनः । अष्टाविंश शतं तेषां देहे पृष्टकरंडकाः ॥४०६॥ वे हमेशा छ?-छ? के पारणे में केवल बेर के जितना आहार लेते हैं उनके शरीर में एक सौ अट्ठाईस पसली (छाती पर की हड्डी) होती है । (४०६) चतुः षष्टिं च दिवसान् विधायापत्यपाल नाम् । स्वर्लोकमेव ते यान्ति कालश्च सुषमान्वहम् ॥४०७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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