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________________ (२४८) अब इस महा हिमवंत पर्वत के उत्तर दिशा में हरि वर्ष क्षेत्र है इसका पर्यंक (पलंग) समान आकार है, और इसके दोनों किनारे समुद्र तक पहुँचते हैं । (३६३) व्यासोऽस्याष्टौ सहस्राणि योजनानां चतुः शती। तथैकविशतिश्चैका कलात्राथ शरं बुवे ॥३६४॥ इस क्षेत्र का विष्कम्भ चौड़ाई में आठ हजार चार सो इक्कीस योजन और एक कला कहा है । (३६४) सहस्राः षोडश त्रीणि योजनानां शतानि च । ... युक्तानि पंचदशभिः कलाः पंचदशोपरि ॥३६५॥ इसका 'शर' सोलह हजार तीन सौ पंद्रह योजन और ऊपर पंद्रह कला होता है । (३६५) त्रिसप्ततिः सहस्राणि जीवा नव शतानि च । एकोत्तराण्यथ कलाः साधुः सप्त दशोपरि ॥३६॥.... इसकी ‘ज्या' तिहत्तर हजार नौ सौ एक योजन और ऊपर साढ़े सत्रह कला होती है । (३६६) धनुःपृष्टं सहस्राणि चतुरशीतिरेव च । षोडशाढयान्यथ कलाश्चतस्रः परिकीर्तिताः ॥३६७॥ और इसकी 'धनुः पृष्ट' चौरासी हजार सोलह योजन और चार कला कहा गया है । (३६७) त्रयोदश सहस्राणि त्रिशती चैकषष्टियुक् ।. योजनानां षट् कलाश्च सार्द्धा बाहैकपार्वतः ॥३६८॥ तथा इसकी प्रत्येक 'बाहा' तेरह हजार, तीन सौ इकसठ योजन और साढ़े छः कला का होता है । (३६८) चतुः पंचाशच्च कोटयो योजनानां तथा पराः । सप्त चत्वारिंश देव लक्षाः किल तथोपरि ॥३६६॥ त्रिसप्ततिः सहस्राणि सप्तत्याढयाष्ट शत्यथ । कलाः सप्तात्र सकलं गणितं प्रतरात्मकम् ॥४००॥ युग्मं ॥ तथा इसका प्रतरात्मक गणित सारा मिलाकर चौवन करोड़, सैंतीस लाख, तिहत्तर हजार, आठ सौ सत्तर योजन और ऊपर सात कला होती है । (३६६-४७०)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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