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________________ (२४७) योजनानि धुवं पंच विंशति हृदनिर्गमे । विष्कम्भोऽस्या योजनार्धे चोद्वेधः कुण्ड सीमया ॥३८७॥ ततश्च वर्धते व्यासो धनूंषि प्रतियोजनम् । एकतो विंशतिश्चत्वारिंशच्चोभयतः पुनः ॥३८८॥ . एवं च द्वे शते सार्धे योजनान्यब्धि संगमे । विष्कम्भेऽस्यास्तत्र पुररूद्धेधः पंचयोजनी ॥३८६॥ इसकी गहराई कुंड तक में आधा योजन की है, और चौड़ाई सरोवर में से निकलते समय में पच्चीस योजन की है, परन्तु उसके बाद प्रत्येक योजन में दोनों तरफ बीस-बीस मिलाकर चालीस धनुष्य की बैठती जाती है, अतः इस तरह समुद्र को मिलने तक में चौड़ाई अढ़ाई सौ योजन और गहराई पांच योजन की होती है । (३८७-३८६) . योजनायामबाहल्या जिव्हिकास्याः प्रकीर्तिता । विष्कम्भतः पुनः पंच विंशतिर्योजनान्यसौ ॥३६०॥ इसका धारा एक योजन लम्बा और मोटा कहा है और पच्चीस योजन चौड़ा कहा है । (३६०) द्वे शते योजनानां च चत्वारिंशत्समन्विते । कुण्डस्यायाम विष्कम्भावुद्वेधो दशयोजनी ॥३६१॥ उस कुंड की लम्बाई चौड़ाई दो सौ चालीस योजन की और गहराई दस योजन की है । (३६१) द्वीप स्यायाम विष्कम्भो द्वात्रिंशद्योजनानि च । जलात्समुच्छ्यः क्रोश द्वयं शेषं तु पूर्ववत् ॥३६२॥ । इति महाहिमवान् पर्वतः ॥ इस कुंड में रहे द्वीप की लम्बाई-चौड़ाई बत्तीस योजन है, और जल के ऊपर ऊंचाई दो कोस की है । शेष सारा पूर्व समान समझना । (३६२) इस तरह से महाहिमवान पर्वत का स्वरूप समझना । · उत्तरस्यां हरिवर्ष महाहिमवतो गिरेः । . प्रौढपर्यकसंस्थानमन्ताभ्यां वारिधिं स्पृशत् ॥३६३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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